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आने वाले वक्त में कांग्रेस की सत्ता में वापसी असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल जरूर: किताब में दावा

पिछले एक दशक में जिस भारत ने आकार लिया है, उसमें कांग्रेस शासित भारत इतना पीछे छूट गया है कि पार्टी के अस्तित्व तक पर संकट खड़ा हो गया है। सत्ता में लौटना तो दूर की बात है, उसके मुख्य विपक्षी दल तक बने रहने की संभावनाएं धूमिल हो रही हैं। एक नई किताब में यह दावा किया गया है। व्हाट इफ देयर वाज नो कांग्रेस: द अनसेंसर्ड हिस्ट्री ऑफ़ इंडिपेंडेंट इंडिया में, राजनीतिक टिप्पणीकार प्रियम गांधी-मोदी ने यह विचार व्यक्त किया है कि अगर पिछले 80 साल के अधिकांश समय में कांग्रेस सत्ता में नहीं होती तो भारत कितना अलग होता।

रूपा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक, पिछले 80 वर्षों में भारत के राजनीतिक इतिहास को आकार देने वाली कुछ प्रमुख घटनाओं – विभाजन, कश्मीर, शासन, घोटाले, लोकतंत्र और इसकी बाधाएं, आर्थिक नीति, बौद्धिक उपनिवेशीकरण और विदेश नीति – पर नये सिरे से रोशनी डालती है और भविष्य के भारत के लिए रूपरेखा भी प्रस्तुत करती है। प्रियम ने दावा किया देश की जनता भ्रष्टाचार के मुकाबले प्रगति, गढ़े हुए झूठ के मुकाबले सच, आतंकवाद के मुकाबले सुरक्षा और अवरोधों के मुकाबले तरक्की को चुनती आ रही है। मेरे विचार से निकट भविष्य में कांग्रेस की सत्ता में वापसी असंभव नहीं है तो बहुत मुश्किल जरूर है।

उनका कहना था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फरवरी 2022 में संसद के शीतकालीन सत्र में एक सवाल उठाया था कि अगर भारत में कांग्रेस नहीं होती तो क्या होता? तब भारत की बौद्धिक बिरादरी, इतिहासकारों और सोशल मीडिया की फौज आदि को जवाब तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा और इनमें कुछ ने उनके विचारों का समर्थन करने के इरादे से, कुछ ने विरोध करने के लिए और बाकी ने ट्रोल करने के इरादे से ऐसा किया।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, हालांकि उसके नेतृत्व ने कुछ गलतियां भी कीं जिसकी वजह से अविभाजित भारत को बांट दिया गया। प्रियम ने सवाल उठाया कि अगर कांग्रेस को समाप्त करने के महात्मा गांधी के आह्वान को मान लिया गया होता तो आज का भारत कैसा होता?

उन्होंने कहा, यह समझने के लिए कि महात्मा (गांधी) ने आखिरकार ऐसी सलाह क्यों दी, मैंने भारतीय स्वतंत्रता के समय के आसपास की परिस्थितियों और उसके भीतर मौजूद तत्वों को समझने का प्रयास किया है, जो सैकड़ों वर्षों के औपनिवेशिक शासन का परिणाम थीं। प्रियम ने लिखा कि उनकी किताब कांग्रेस की मौजूदा स्थिति में उसकी कार्यशैली समझने का प्रयास है ।

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