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धूमधाम से मना सरहुल पर्व, सामाजिक सौहार्द और एकता का दिया संदेश.

जिले में सरहुल का पावन पर्व पूरे हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ संपन्न हुआ। प्रकृति और समाज के बीच अटूट संबंध को दर्शाने वाला यह त्योहार लोगों के बीच भाईचारे और एकता की भावना को और मजबूत कर गया। पारंपरिक रीति-रिवाजों और उत्सवों के साथ मनाए गए इस पर्व में बड़ी संख्या में ग्रामीणों और शहरवासियों ने भाग लिया।

प्रकृति पूजन और पारंपरिक अनुष्ठान

सरहुल, जो मुख्य रूप से आदिवासी समाज का प्रमुख त्योहार है, प्रकृति की आराधना और नवजात फूलों के स्वागत का प्रतीक है। इस अवसर पर विभिन्न गांवों और शहरों में सरना स्थलों पर विशेष पूजा-अर्चना की गई। पारंपरिक पुजारियों ने साल वृक्ष की पूजा कर अच्छी फसल, खुशहाली और समाज में शांति की कामना की। महिलाओं ने पारंपरिक वस्त्र धारण कर पूजा में भाग लिया, जबकि युवाओं ने पारंपरिक नृत्य और गीतों से माहौल को उल्लासमय बना दिया।

रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन

सरहुल के अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहरों में भी इस पर्व को लेकर खासा उत्साह देखा गया। पारंपरिक ढोल-नगाड़ों की धुन पर थिरकते लोग और लोकगीतों की गूंज ने माहौल को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्थानीय कलाकारों ने अपने नृत्य और संगीत प्रस्तुतियों से लोगों का मन मोह लिया।

सामाजिक सौहार्द और एकजुटता का संदेश

यह पर्व केवल धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में आपसी प्रेम, सद्भाव और भाईचारे को भी प्रोत्साहित करता है। इस बार सरहुल ने जिले में जाति, धर्म और समुदाय की सीमाओं को तोड़ते हुए सभी लोगों को एकजुट किया। विभिन्न समुदायों के लोगों ने मिलकर इस उत्सव को मनाया, जिससे सामाजिक सौहार्द और आपसी विश्वास को और बल मिला।

जनता और प्रशासन की सक्रिय भागीदारी

सरहुल के सफल आयोजन में स्थानीय प्रशासन और नागरिकों की सक्रिय भूमिका रही। सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए पुलिस बल की तैनाती की गई थी, जिससे लोग निर्बाध रूप से उत्सव में शामिल हो सके।

निष्कर्ष

सरहुल पर्व जिले में उमंग और उत्साह के साथ मनाया गया। इसने न केवल प्रकृति प्रेम और परंपराओं के महत्व को उजागर किया, बल्कि समाज में सद्भाव और एकता का संदेश भी दिया।

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