जनजातीय पारंपरिक प्रणाली से पानी संरक्षण और सब्जी सिंचाई संभव हुई.
भारत के कई आदिवासी (Tribal) क्षेत्रों में, विशेषकर मध्य और पूर्वी भारत में.
‘गोंडरी’ नामक एक पारंपरिक जनजातीय जल प्रबंधन प्रणाली आज भी सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। यह प्रणाली पानी के संरक्षण और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने के बुनियादी सिद्धांतों पर आधारित है, जो आधुनिक दुनिया के लिए भी एक महत्वपूर्ण सबक है। यह जनजातीय ज्ञान जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए एक टिकाऊ समाधान प्रदान करता है।
गोंडरी प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह घरेलू अपशिष्ट जल (Greywater) का प्रबंधन इस तरह से करती है कि उसे पुन: उपयोग में लाया जा सके। इस व्यवस्था के तहत, घरों में बर्तन धोने और स्नान करने जैसे कार्यों में उपयोग किए गए पानी को एकत्रित किया जाता है। इस पानी को सीधे नालियों में बहाने के बजाय, उसे सावधानीपूर्वक छोटे चैनलों के माध्यम से घर के पिछवाड़े या पास के बगीचों की ओर मोड़ दिया जाता है।
इस पुनर्चक्रण (Recycling) प्रक्रिया से यह पानी सीधे सब्जियों और पौधों की सिंचाई के काम आता है। इस तरह, पानी की बर्बादी शून्य हो जाती है और किसानों को अतिरिक्त सिंचाई के लिए भूजल (Groundwater) निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती। गोंडरी, कम लागत वाली और पर्यावरण के अनुकूल तकनीक है जो जनजातीय समुदायों को स्वस्थ सब्जियाँ उगाने में मदद करती है, जिससे उनकी खाद्य सुरक्षा मजबूत होती है। यह प्रणाली वास्तव में प्रकृति के साथ जीने की पारंपरिक आदिवासी बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।



