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सुप्रीम कोर्ट दोहरी आजीवन सजा के कानूनी पहलू पर करेगा विचार.

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर विचार करने की सहमति व्यक्त की है कि क्या दो बार हत्या का दोषी ठहराए गए व्यक्ति को लगातार दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है।

यह मामला न्यायपालिका के सामने एक जटिल कानूनी चुनौती पेश करता है, जिसमें सजा के सिद्धांतों और अपराध की गंभीरता के बीच संतुलन तलाशने की आवश्यकता है। यह निर्णय भविष्य में समान अपराधों में सजा सुनाए जाने के तरीके के लिए एक मिसाल कायम करेगा।

यह कानूनी मुद्दा 2010 के एक दोहरे हत्याकांड से संबंधित एक याचिका की सुनवाई के दौरान उठा है। इस मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2015 में एक फैसला सुनाया था, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की है। याचिकाकर्ता ने निचली अदालतों द्वारा दी गई लगातार दो आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी है, यह तर्क देते हुए कि कानून के तहत ऐसी सजाएं शायद अनुमेय नहीं हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला इस विषय पर कानूनी स्थिति को स्पष्ट करेगा और भारतीय दंड कानून के तहत सजा के प्रावधानों की व्याख्या को प्रभावित कर सकता है। यह कानूनी विशेषज्ञों के लिए एक महत्वपूर्ण बहस का विषय है कि क्या ऐसी लगातार सजाएं दोषी को वास्तव में अतिरिक्त दंडित करती हैं, क्योंकि ‘आजीवन कारावास’ का अर्थ सामान्यतः व्यक्ति के ‘शेष प्राकृतिक जीवन’ तक कारावास होता है। अदालत का अंतिम निर्णय इस कानूनी पहेली को सुलझाएगा।

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