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बिहार जातीय जनगणना का संदेश क्या है? चार पॉइंट्स में समझ लें सारी बड़ी बातें

बिहार सरकार ने सोमवार को गांधी जयंती के अवसर पर जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी। नतीजों की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रदेश की आबादी में में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 63% हिस्सेदारी है। ध्यान रहे कि बिहार में ओबीसी को दो वर्गों- पिछड़ा वर्ग (बीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में बांटा गया है। जाति आधारित जनगणना में उप-जातिवार जनसंख्या के अलावा और भी बहुत सारे आंकड़े हैं और यह देखा जाना बाकी है कि उन्हें कब जारी किया जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह रहे हैं कि वो आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े भी विधानसभा में पेश करेंगे। बहरहाल, आइए समझते हैं कि अब तक जारी आंकड़ों से बिहार का क्या जातीय परिदृश्य बनता है…

1. 63 प्रतिशत ओबीसी आबादी कोई हैरतअंगेज नहीं

पहली महत्वपूर्ण बात तो यह है कि बिहार की जातीय जनगणना, वर्ष 1931 की जनगणना के बाद पहली ऐसी कवायद थी जिसमें जाति के आधार पर आबादी का आंकड़ा जुटाया गया। 1931 के बाद से हर दस साल में होने वाली जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की हिस्सेदारी का ही आकलन हुआ करता है। इस बीच मांग जोर पकड़ती रही कि आरक्षण के दायरे में आने वाले अन्य पिछड़े वर्ग के आंकड़ों का पता लगाया जाए। भले ही जनगणना में एससी-एसटी के सिवा किसी अन्य जाति का जिक्र नहीं होता था, लेकिन कई अन्य सरकारी सर्वेक्षणों में ओबीसी समेत अन्य सभी नॉन-एससी, नॉन-एसटी जातियों की आबादी का पता चलता ही रहा है। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) या सावधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) आदि के आकड़े बताते हैं कि बिहार में ओबीसी की आबादी 55 प्रतिशत के करीब है।

अलग-अलग सर्वेक्षणों के अनुसार बिहार का सामाजिक समीकरण

NFHS 2019-21

PLFS 2020-21

जातीय जनगणना 2023204060

54.1

57.3

63.1

24.2

26.6

19.7

3.7

1.8

1.7

18

14.2

15.5

ओबीसी

एससी

एसटी

अन्य

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