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निज्जर केस में जस्टिन ट्रूडो जो नहीं पेश कर पाएं वे असली सबूत तो कहीं और हैं!

टेरी मिलवस्की
ऑस्कर वाइल्ड फॉक्स हंटरों को नापसंद करते थे। उनकी मेहनत को बेकार बताते थे क्योंकि शिकार को तो वे खा नहीं सकते थे। खालिस्तान आंदोलन को लेकर ज्यादातर भारतीय भी ऐसी ही नापसंदगी का भाव रखते हैं। हिकारत से देखते हैं। वह इसे बदनामी वाला और खतरनाक दोनों मानते हैं। दशकों से अलगाववाद की मंशा से चलाया जा रहा ये आंदोलन अब किसी मतलब का नहीं है। जो चीज हासिल नहीं हो सकती, उसके लिए हवा बनाया जा रहा है।

भारत में अलगाववादियों का अलग खालिस्तान का दिवास्वप्न तो 30 साल पहले ही खत्म हो चुका था। दुनियाभर में जितने सिख हैं, उनकी 75 प्रतिशत आबाजी तो आज पंजाब में रहती है। पंजाब में प्यू रिसर्च ने 2020 में एक सर्वे किया था जिसमें पंजाब के लोगों ने अलगाववाद को सिरे से खारिज किया था। पंजाब में रहने वाले 95 प्रतिशत सिखों ने पोल में दो टूक कहा कि उन्हें ‘भारतीय होने पर गर्व है।’ बाहरियों खासकर पश्चिमी देशों को पोल के ये नतीजे अविश्वसनीय लग सकते हैं। लेकिन ये याद रखने की जरूरत है कि पंजाब में तकरीबन हर परिवार की खालिस्तानी आतंकवाद को लेकर अपनी यादें हैं। 1980 और 90 के दशक के शुरुआती वर्षों में खालिस्तानी आतंकवाद और नरसंहार से पंजाब में 20 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुईं, इनमें से ज्यादातर सिख थे।

लेकिन अब एक बार फिर खालिस्तानी खतरा सिर उठा रहा है, बिना हत्याओं और खूनखराबे के। लेकिन इस बार इसके गहरे राजनीतिक असर हैं। इसने दो देशों को बांट दिया है- एक भारत जो सबसे ज्यादा आबादी वाला मुल्क है तो दूसरा कनाडा जो सबसे ज्यादा क्षेत्रफल वाले देश में है। भारत ने कनाडा पर आतंकियों को शह देने का आरोप लगाया है जो भारत के खिलाफ हिंसा और साजिश में शामिल हैं। दूसरी तरफ कनाडा ने भारत पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या का आरोप लगाया है। लेकिन कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपने आरोपों या दावों को अभी तक साबित नहीं कर पाए हैं। अबतक हम सिर्फ यही जानते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसे लेकर बात की थी जिनकी सरकार ने आरोपों को ‘बेतुका’ बताकर खारिज किया। इतना ही नहीं, जैसे को तैसा की तर्ज पर कनाडाई राजनयिक को भारत छोड़ने का आदेश दिया। दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार को लेकर चल रही बातचीत खटाई में पड़ चुकी है। दोनों पक्ष और उनके सहयोगी देश अब इसका इंतजार कर रहे हैं कि क्या ट्रूडो अपने आरोपों पर टिके रहेंगे।

अगर वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उनके लिए मुश्किल बढ़ जाएगी। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण पहले ही बता रहे हैं कि अगर कल चुनाव हों तो वह बुरी तरह हारेंगे। नई दिल्ली में जी-20 समिट के दौरान उनका हाव-भाव शर्मिंदा करने वाला था, जहां मोदी ने उनपर आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगाया था। ट्रूडो ने मोदी को घेरने की कोशिश की लेकिन उल्टे घेर लिए गए। अब वह सनसनीखेज दावों के साथ आए लेकिन उनका दांव तभी सफल होगा जब वह कनाडा के लोगों और सहयोगी देशों को यह भरोसा दिला पाएंगे कि दावों में दम है। अभी तक तो कनाडा के सहयोगियों ने चिंता जताते हुए पूरी जांच की मांग की है लेकिन देखना होगा कि उनका ये रुख कबतक बना रहता है।

लेकिन कनाडा के सहयोगी भी आखिर इससे ज्यादा क्या कह सकते हैं खासकर तब जब ट्रूडो खुद जांच में भारतीय सहयोग की मांग कर रहे हैं? इससे संकेत मिलता है कि उनके पास फिलहाल कुछ ठोस नहीं है और वह भारत की मदद पर निर्भर हैं। लेकिन अभी के हालात में भारत से उस तरह की कोई मदद संभव नहीं दिखती।

पूरे मामले में सबूत का अभाव साफ दिखता है। यह आरोप कि 18 जून को हुई हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है, इसे सबसे पहले खालिस्तानियों ने उठाया और बिना किसी सबूत के। उन्होंने बार-बार आरोपों को दोहराया और उम्मीद की कि लोग इस पर भरोसा कर लेंगे। खालिस्तानियों का आरोप है कि 2 महीने के भीतर में उसके 3 बड़े नेताओं की मौत हुई है। एक की लाहौर में, एक की इंग्लैंड के बर्मिंघम में और हरदीप निज्जर की ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में में। बर्मिंघम वाला आरोप तभी हवा में उड़ गया जब अस्पताल ने पुष्टि की कि मौत ब्लड कैंस से हुई है। लेकिन निज्जर की हत्या के बाद खालिस्तानियों ने तुरत-फुरत पोस्टर छपवा लिए और भारत पर आरोप मढ़ा। पोस्टरों में भारतीय राजनयिकों को ‘हत्यारे’ के तौर पर दिखाया गया।

ठीक उसी समय असली सबूत सामने आए जो एक अलग ही कहानी कहते हैं। जुलाई 2022 में 1985 के कनिष्का बम कांड के एक आरोपी रिपुदमन सिंह मलिक की हत्या हुई थी। कभी कट्टर खालिस्तान समर्थक रहे मलिक बाद में सिखों के लिए पीएम मोदी की तरफ से किए जा रहे कामों के प्रशंसक हो गए थे। उनके और उनके पूर्व सहयोगी कट्टर खालिस्तानियों के बीच मुकदमा भी चल रहा था। इन सबसे हरदीप निज्जर समेत उनके कई पूर्व सहयोगी भड़के हुए थे। और जब इस साल जून में निज्जर की हत्या हुई तो ये अफवाहें उड़ीं कि मलिक कैंप ने बदला लिया है। संक्षेप में कहें तो लोगों के बीच कानाफूसी यही थी कि निज्जर की हत्या बदले के लिए की गई है, न कि किसी देश ने उसे अंजाम दिया है। मलिक और निज्जर एक दूसरे के खिलाफ हमले किए करते थे। वीडियो जारी करते थे। दोनों एक दूसरे से नफरत करते थे। दोनों में मुकदमेबाजी चल रही थी। निज्जर की हत्या का असल सबूत तो इसी में छिपा है जबकि ट्रूडों के आरोपों के समर्थन में सबूत ही नहीं है।

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