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सोवियत संघ की तरह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा चीन? गंभीर आर्थिक संकट में घिरा जिनपिंग का देश, जानें

मुश्किल में फंसा चीन, दुनिया के कई जानकारों के लिए अब चिंता का विषय बन गया है। मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब के नाम से मशहूर चीन अब अपनी खराब होती अर्थव्‍यवस्‍था और बढ़ती बेरोजगारी की वजह से मुश्किलों में आ गया है। यह बात भी सच है कि चीन जो आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है कभी सबसे ज्‍यादा गरीब देश था। पिछले चार दशकों में इसकी शानदार तरक्‍की ने सबको हैरान कर दिया है। हर देश मुश्किल के दौर में आता है और एक समय ऐसा होता है जब परेशानियां उस पर हावी हो जाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि आज जो हालात चीन के हैं, वही हालात कभी सोवियत संघ के थे। इन हालातों ने सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्‍या चीन भी उस तरफ आगे बढ़ रहा है?

बड़ी मुसीबत की तरफ चीन!
विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा नहीं है। उन्‍होंने सोवियत संघ से चीन की तुलना करने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि चीन, सोवियत संघ की तुलना में एक विशाल देश है। ऐसे में इसका उस तरह से पतन नहीं होगा मगर यह बात भी सच है कि देश में हालात ठीक नहीं है। इन हालातों की वजह से चीन एक बड़ी मुसीबत की तरफ बढ़ चुका है। सोवियत संघ कई देशों का एक ऐसा समूह था जिसकी अर्थव्‍यवस्‍था सन् 1980 के दशक के अंत में तेजी से ढह गई। कई लोग अब सोवियत संघ की तर्ज पर कहने लगे हैं कि चीन का आर्थिक चमत्‍कार अब खत्‍म हो चुका है।

अर्थव्‍यस्‍था बुरी तरह से चौपट
पिछले कुछ दिनों चीन की मुद्रा युआन कमजोर हुआ है, प्रॉपर्टी सेक्‍टर में तनाव आया और कई ऐसी बातें हुई हैं जो अर्थव्‍यवस्‍था के खराब होने की तरफ इशारा करते हैं। ब्रिटिश अखबार द गार्डियन में अर्थव्‍यवस्‍था के मामलों पर लिखने वाले लैरी इलियट लिखते हैं कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को संरचनात्मक आर्थिक परिवर्तन करने की सख्‍त जरूरत है। साथ ही यह भी जरूरी है कि कठोर राजनीतिक नियंत्रण को कम किया जाए। उनका कहना है कि चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग एक ताकतवर व्यक्ति हैं। वह आजादी और लोकतंत्र के लिए कोई रियायत देने को तैयार नहीं होंगे। ऐसे में देर-सबेर चीन, सोवियत संघ की राह पर ही होगा।

सोवियत संघ की तरह नहीं होगा पतन
उनकी मानें तो यह हालांकि दूर की कौड़ी है कि चीन का पतन सोवियत संघ की तरह होगा। सोवियत संघ, चीन की तुलना में बहुत छोटी अर्थव्यवस्था थी और यहां पर ग्‍लोबल सप्‍लाई चेन भी बहुत कम थी। दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए चीन का तो काफी महत्‍व है लेकिन सोवियत संघ की उतनी अहमियत कभी नहीं रही। उन्‍होंने बीसीए रिसर्च के धवल जोशी की एक रिसर्च का हवाला दिया। जोशी ने बताया था कि चीन ने पिछले 10 सालों में दुनिया की तरक्‍की में 41 फीसदी का योगदान दिया है। यह अमेरिका के 22 फीसदी योगदान की तुलना में दोगुना है। साथ ही चीन के सामने यूरोप का नौ फीसदी का योगदान भी बौना लगने लगता है।

कोविड के पहले से बुरे हाल

चीन के नीति निर्माता बार-बार यह बात कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक रहेगा मगर फिर भी विकास संभावनाओं के बारे में मंदी जारी है। इलियट की मानें तो कोविड-19 महामारी के लॉकडाउन की वजह से ऐसा नहीं हुआ है। अर्थव्यवस्था में महामारी से पहले ही सुस्ती के संकेत दिखाई दे रहे थे। फॉरेन अफेयर्स में लिखते हुए, पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के अध्यक्ष एडम पोसेन ने कहा कि चीन पिछले दशक के मध्य से ‘ लंबे आर्थिक कोविड’ का शिकार था।

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