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मेरी अंतिम सांस तक चलेगी इंसाफ की जंग… मधुमिता की बहन निधि बोलीं- मैंने अमरमणि से लड़ते जिंदगी गुजार दी

मैं लखनऊ में म्यूजिक की पढ़ाई कर रही थी लेकिन बहन मधुमिता (Madhumita Shukla) की हत्या के बाद से सब छूट गया। अगर लोगों के कहे अनुसार मैं वापस अपनी पढ़ाई शुरू करती तो फिर केस कैसे लड़ पाती? वो अमरमणि (Amarmani Tripathi) इतना बड़ा आदमी है, उसके इतने बड़े वकील हैं। और इधर हम अकेले हैं। मेरी जिंदगी का एक ही मकसद रहा है- बहन को न्याय दिलाना। यह कहना है निधि शुक्ला का, जो 20 साल पहले लखनऊ में कत्ल कर दी गई कवियत्री मधुमिता शुक्ला की जुड़वा बहन हैं।

प्रमुख दैनिक अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार लखीमपुर खीरी जिले के मिशा टोला मोहल्ले की पतली गलियों में बसे उस घर में सबकुछ ठहरा हुआ सा है। यहां मधुमिता शुक्ला की पुरानी तस्वीर के साथ ही कवि सम्मेलनों में जीती ट्रॉफियां भी धूल खा रही हैं। सूटकेस और आल्मारी में केस से जुड़े कागजात भरे पड़े हैं। जिंदगी के 40 साल पार कर चुकीं निधि बीते कुछ दिनों से मायूस हैं। अमरमणि त्रिपाठी को कोर्ट से जमानत मिलना इसकी वजह है।

मेरे 20 सालों के संघर्ष की लाज रखिए, अमरमणि की रिहाई पर मधुमिता की बहन ने लगाई गुहार
मधुमिता शुक्ला के साथ ही खेल-कूदकर बड़ी हुईं निधि कहती हैं कि मेरी जिंदगी का ज्यादातर समय बहन को न्याय दिलाने और अमरमणि जैसे इंसान से लड़ने में गुजर गया। अब अगले करीब 20 साल जो बचे हैं, उनका क्या होगा? मधु की डेडबॉडी तक परिवार में सबसे पहले मैं पहुंची थी। मेरे हाथ खून में सने हुए थे। अगर उसी दिन मैंने खुद को जिंदा लाश में तब्दील ना कर लिया होता तो शायद डर और पागलपन से कबका मर गई होती।

24 घंटे यूपी पुलिस के 2 जवानों की सुरक्षा में रहने वाली निधि बताती हैं कि उनकी जिंदगी तबसे ही डर के साए में गुजरी है। ना जाने कितने धमकी भरे फोन, राह चलते अपरिचित लोगों से डर, हर बार नैनीताल कोर्ट जाते समय यह डर सताना कि जिंदा लौट भी पाऊंगी या नहीं। हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को डर सताता था कि कहीं सरकार की तरफ से कैदियों की रिहाई में अमरमणि भी बाहर ना आ जाए। लेकिन आखिरकार यह डर सच साबित हुआ।

निधि बताती हैं कि उन्होंने खुद का जीवन मधुमिता को न्याय दिलाने में समर्पित कर दिया। दो बड़े भाइयों को केस से दूर रखा, क्योंकि उनके परिवार और बच्चे हैं। मां को एक रिलेटिव के घर पर शिफ्ट कर दिया। दो साल पहले एक सेल्स मैनेजर से शादी की लेकिन कभी भी एक नॉर्मल शादीशुदा जिंदगी नहीं जी सकी। यह खतरा अब अमरमणि के बाहर आने के बाद और भी ज्यादा बढ़ गया है। हम सबकी जान को खतरा है।

2003 में मधुमिता हत्‍याकांड के बाद यूपी की राजनीति गरमा गई थी। लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में 9 मई को मधुमिता की गोली मारकर हत्‍या कर दी गई थी। देहरादून फास्‍ट ट्रैक कोर्ट ने 24 अक्‍टूबर, 2007 को अमरमणि, मधुमणि, भतीजे रोहित चतुर्वेदी, पवन पांडेय और शूटर संतोष राय को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।

अमरमणि और मधुमणि कई साल से गोरखपुर जेल की अस्‍पताल में रहते आए हैं। कभी उनका गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज तो कभी लखनऊ के केजीएमयू में इलाज चलता रहा है। निधि शुक्‍ला ने इस बात को लेकर भी यूपी सरकार से कई बार शिकायत की है। उन्होंने कहा कि वे लोग जेल से अधिक तो प्राइवेट वॉर्ड में आराम भरी जिंदगी जीते रहे।

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