World

अजरबैजान ने आर्मेनिया पर क्यों किया हमला? क्या भारत के पिनाका और टीसी-40 की ताकत का नहीं है डर?

आर्मेनिया और अजरबैजान में एक बार फिर युद्ध की शुरुआत हो गई है। दोनों देशों की सेनाएं नागोर्नो-काराबाख में एक दूसरे के सामने हैं। नागोर्नो-काराबाख अंतरराष्ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्सा है, लेकिन आजादी के बाद से ही यह आर्मेनिया के कब्जे में है। इस हिस्से पर दोनों देश अपना अधिकार जमाते हैं। इस कारण 1991 के बाद से आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच कई युद्ध लड़े जा चुके हैं। 2020 में भी आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख को लेकर 3 महीने तक भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में आर्मेनिया को भीषण नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद से ही आर्मेनिया लगातार अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है। आर्मेनिया ने भारत से पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर और 155 एमएम की तोप की खरीद की है। वहीं, आर्मेनिया अमेरिकी सेना के साथ युद्धाभ्यास भी कर रहा है।

आर्मेनिया ने भारत से खरीदें हैं ये हथियार

आर्मेनिया ने 2020 की हार के बाद अपनी सेना को मजबूत करने के लिए भारत से कई हथियारों की खरीद की है। इसमें पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम और स्वदेशी होवित्जर टीसी-40 शामिल है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 155एमएम के इस होवित्जर और पिनाका रॉकेट सिस्टम की पहली खेप को ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह के जरिए आर्मेनिया भेजा जा चुका है। पिनाका का एक रॉकेट लॉन्चर 60 मीटर के एरिया में सबकुछ बर्बाद कर सकता है। यह अजरबैजान के मिलिट्री बेस, आर्मर कॉलम और रडार स्टेशन को पलक झपकते मिट्टी में मिला देगा। वहीं, टीसी-20, मल्टी टेरेन ऑर्टिलरी गन 155 मिमी/39 कैलिबर अल्ट्रा लाइट होवित्जर का एक स्टील वेरिएंट है। यह होवित्जर 30 किमी की दूरी पर लक्ष्य को मार सकता है। ट्रक-माउंटेड होने के कारण इसकी मोबिलिटी काफी ज्यादा है।

भारत के हथियारों से घबराया हुआ है अजरबैजान

अजरबैजान पहले से ही भारत-आर्मेनिया रक्षा खरीद से घबराया हुआ है। जब पिछले महीने भारत ने आर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति शुरू की, तब भी अजरबैजान की बेचैनी साफ दिखाई दी। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस खबर के आने के बाद अजरबैजान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भारतीय राजदूत से मिलकर आर्मेनिया के साथ भारत के बढ़ते सैन्य सहयोग पर चिंता जताई। हालांकि, अजरबैजान की इस चिंता पर भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया। इसकी भी आधिकारिक पुष्टि नहीं है कि भारत ने आर्मेनिया को हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी है या अभी बाकी है।

अजरबैजान-आर्मेनिया में क्यों है तनाव

आर्मेनिया और अजरबैजान आजादी के बाद से ही नागोर्नो-काराबाख को लेकर एक दूसरे से जंग में उलझे हैं। नागोर्नो-काराबाख इलाका 4400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस इलाके पर आर्मेनियाई जातीय गुटों का कब्जा है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए खुद को आर्मेनिया में शामिल कर लिया था। इसके बाद से आर्मेनिया इसे अपना हिस्सा मानता है, जबकि अजरबैजान अपना। वहीं, नागोर्नो-काराबाख के कुछ लोग खुद को एक स्वतंत्रत देश के तौर पर देखते हैं। नागोर्नो-काराबाख में हाल में ही राष्ट्रपति चुनाव हुआ था, जिसे लेकर अजरबैजान ने कड़ी प्रतिक्रिया भी दी थी। उसके बाद से ही नागोर्नो-काराबाख में आर्मेनिया और अजरबैजान की सेनाओं के बीच छिटपुट झड़पों की शुरुआत हो गई थी।

रूस के कारण युद्ध लड़ते रहते हैं दोनों देश!

आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों 19वीं सदी की शुरुआत में ही एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरे। तब भी दोनों देशों के बीच गंभीर सीमा विवाद था। इसका असर प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद दिखा, जब इनका एक तीसरा हिस्सा ट्रांसकेशियान फेडरेशन अलग हो गया। ट्रांसकेशियान फेडरेशन को वर्तमान में जॉर्जिया के नाम से जानते हैं। बाद में 1922 में आर्मेनिया, अजरबैजान और जॉर्जिया तीनों ही सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। उस दौरान रूस के महान नेता के नाम से मशहूर जोसेफ स्टालिन ने नागोर्नो-काराबाख को आर्मेनिया को सौंप दिया। तब इस हिस्से पर अजरबैजान का कब्जा था, लेकिन सोवियत यूनियन के दबाव में उसे नागोर्नो-काराबाख से अपना कब्जा हटाना पड़ा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button