श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस बार के बजट सत्र में एक महत्वपूर्ण विधेयक पर बहस होने वाली है।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के विधायक वहीद उर रहमान पारा ने एक विधेयक पेश किया है, जिसमें राज्य भूमि, कचाराई, सार्वजनिक भूमि और शमिलात पर बसे लोगों को संपत्ति अधिकार देने का प्रस्ताव रखा गया है।
यह विधेयक 2001 में लागू हुए रोशनी एक्ट से मिलता-जुलता है, जिसे 2020 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने इसके तहत हुई सभी भूमि आवंटनों को अवैध करार देते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।
2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला द्वारा पारित रोशनी एक्ट के तहत सरकार ने 1990 तक अवैध रूप से कब्जा की गई सरकारी भूमि को अधिकारिक रूप से आवंटित करने की योजना बनाई थी। इससे 25,448 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति की उम्मीद थी, जिसे बिजली परियोजनाओं में लगाने की योजना थी। हालांकि, 2014 की CAG रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि इससे सिर्फ 76.24 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए और इसमें बड़े पैमाने पर अनियमितताएं थीं।
पारा का नया विधेयक केवल आवासीय संपत्तियों को कानूनी मान्यता देने का प्रस्ताव करता है, व्यावसायिक संरचनाओं को इससे बाहर रखा गया है। उनका तर्क है कि यह विधेयक उन निवासियों को सुरक्षा देगा, जो नए भूमि कानूनों के कारण बेदखली का सामना कर रहे हैं।
पारा ने दावा किया कि विधानसभा इस विधेयक को बहुमत से पारित कर उपराज्यपाल को मंजूरी देने के लिए बाध्य कर सकती है। हालांकि, नए नियमों के तहत उपराज्यपाल को किसी भी विधेयक को मंजूरी देने, रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार प्राप्त है।



