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गंजम जिले में शुरू हुई ‘डांडा यात्रा’, आस्था और तपस्या का पर्व.

ओडिशा के गंजम जिले में प्रसिद्ध ‘डांडा यात्रा’ का शुभारंभ हो चुका है, जो आस्था और तपस्या का प्रतीक है।

चैत्र माह की सुबहें यहां शंखनाद और ढोल की गूंज के साथ शुरू होती हैं, जिससे डांडा यात्रा का आगाज होता है।

यह परंपरा देवी रुद्रकाली को समर्पित है और इसमें ‘डांडा नाचा’ (डांस) प्रमुख हिस्सा होता है।

डांडा नाचा में सैकड़ों पुरुष भक्त एक साथ नृत्य करते हैं और भक्ति के trance (भावावेश) में डूब जाते हैं।

डांडा नाचा के दौरान डांडुआ (नृत्य करने वाले श्रद्धालु) आग के अंगारों पर चलकर कठोर तपस्या करते हैं।

यह आयोजन एक प्रकार की मन्नत पूरी करने के लिए किया जाता है, जिसमें डांडुआ कठोर नियमों का पालन करते हैं।

पूरे गंजम जिले में इस दौरान भक्तिमय माहौल बन जाता है और हर गली-मोहल्ला आध्यात्मिक रंग में रंग जाता है।

श्रद्धालु देवी रुद्रकाली से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए तपस्या करते हैं।

डांडुआ आग के अंगारों पर चलने के साथ अन्य कठिन कृत्य भी करते हैं, जिसे देवी को समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

यह यात्रा सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाया जाता है।

इस आयोजन में स्थानीय निवासियों के अलावा बड़ी संख्या में पर्यटक भी शामिल होते हैं।

डांडा यात्रा के दौरान भक्त कठिन व्रत और उपवास भी रखते हैं।

यह आयोजन चैत्र माह के दौरान लगभग 13 से 21 दिनों तक चलता है।

इस दौरान डांडुआ अपने शरीर पर कई तरह के धार्मिक निशान भी बनवाते हैं।

गांव-गांव में डांडा नृत्य के आयोजन से पूरा क्षेत्र उत्सवमय माहौल में डूब जाता है।

यह आयोजन ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रमुख हिस्सा माना जाता है।

आस्था, तपस्या और भक्ति का यह अद्भुत संगम डांडा यात्रा को बेहद खास बनाता है।

डांडा यात्रा के दौरान देवी रुद्रकाली के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है।

इस दौरान श्रद्धालु अपनी मन्नतें मांगते हैं और मां रुद्रकाली से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

डांडा यात्रा स्थानीय समाज के लोगों के बीच एकता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।

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