पिथौरागढ़, उत्तराखंड: उत्तराखंड के मुनस्यारी क्षेत्र में स्थित मिलम गाँव में 63 साल बाद पहला नया मकान बनकर तैयार हुआ है, जो इस सीमावर्ती गाँव के लिए जीवन की वापसी का संकेत है। यह गाँव 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बड़े पैमाने पर हुए पलायन (Emigration) का गवाह रहा है, जिसके कारण यह लगभग वीरान हो गया था। इस नए निर्माण ने स्थानीय निवासियों और प्रशासन में आशा की नई किरण जगाई है।
मिलम गाँव से 1962 के युद्ध के बाद यहाँ के मूल निवासी अपने घरों को छोड़कर मैदानी इलाकों में चले गए थे। पिछले छह दशकों से, यह गाँव मुख्य रूप से ग्रीष्मकाल में केवल अल्पकालिक प्रवास और कुछ व्यापारिक गतिविधियों के लिए ही उपयोग में लाया जाता था। लेकिन अब, इतने लंबे समय के बाद एक स्थायी संरचना का निर्माण होना इस बात का प्रमाण है कि लोग एक बार फिर अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह पलायन की समस्या को उलटने की दिशा में पहला ठोस कदम है।
प्रशासन ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ जैसी योजनाओं के तहत सीमावर्ती गाँवों में बुनियादी ढाँचे और पर्यटन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस नए घर का निर्माण गाँव में आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने और रोजगार के अवसर पैदा करने में सहायक हो सकता है। यह घटना दर्शाती है कि सरकार के प्रयासों और स्थानीय लोगों की अपने गाँव से भावनात्मक जुड़ाव के कारण मिलम गाँव अब फिर से आबाद होने की राह पर है, जो सीमा सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।


