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G20 समिट से मिला भारत को पावर पंच, देश को हासिल हुईं ये 5 बड़ी चीजें

G20 का दो दिन का शिखर सम्मेलन यों तो शुरू से ही ग्लोबल डिप्लोमेसी में भारत के लिए बेहद अहम माना जा रहा था। कहा जा रहा था कि इस सम्मेलन से निकले नतीजों से आगे की राह तय होगी। अब जबकि यह आयोजन उम्मीद से ज्यादा सफल रहा, आइए जानते हैं उन पांच चीजों को बारे में जो भारत को ग्लोबल मंच पर मज़बूत करेंगी। बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ

1. ग्लोबल साउथ को मान्यता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ वर्षों से ग्लोबल साउथ यानी विकासशील और अल्प विकसित देशों को लगातार प्रमोट किया है। कुछ मौकों पर उनकी इस बात को अति महत्वाकांक्षा भी कहा गया। यह भी कहा गया कि अभी ग्लोबल साउथ का समय आने में समय लगेगा। लेकिन भारत में G20 सम्मेलन में ही साबित हो गया कि ग्लोबल साउथ का वक्त आ गया है। पूरी समिट में सैकड़ों बार उन पक्षों ने भी इस शब्द को स्वीकार किया, जिन्हें पहले इस पर संदेह था। इस G20 सम्मेलन का यही सबसे बड़ा हासिल रहा। इसी क्रम में भारत स्वाभाविक रूप से ग्लोबल साउथ का लीडर बनकर भी उभरा।

2. मध्यस्थ की हैसियत मिली
जबसे रूस-यूक्रेन युद्ध हुआ, भारत ने इनमें से किसी एक का पक्ष लेने के बजाय खुद की मध्यस्थ की हैसियत बनाए रखी। लेकिन इस पर कई बार गंभीर सवाल भी उठे। साथ ही, किसी बड़े मंच पर ऐसा मौका नहीं आया था, जहां भारत अपने इस रुख को साबित कर सके। लेकिन G20 समूह में, जहां एक ओर अमेरिका और यूरोपीय देश हैं, दूसरी ओर चीन व रूस जैसे देश हैं, वहां भारत ने न सिर्फ संतुलन बनाया, बल्कि सम्मेलन की समाप्ति के बाद दोनों धुर विरोधी पक्षों ने भारत की भूमिका को आत्मसात भी किया। इस सम्मेलन के बाद अब भारत स्वाभाविक मध्यस्थ के रूप में स्थापित हो सकता है

3. मोलभाव की क्षमता बढ़ी
शिखर सम्मेलन के बाद भारत की दुनिया में मोलभाव की क्षमता बढ़ेगी। भारत ऐसे चंद देशों में है, जो G20 का सदस्य होने के साथ BRICS का मेंबर भी है। क्वॉड का हिस्सा भी है। इसके अलावा, भारत कई अन्य ग्लोबल पहल का हिस्सा भी है। दिलचस्प बात है कि इसमें कई ऐसे समूह हैं, जो एक-दूसरे के विरोधी माने जाते हैं। इन सभी में भारत की सक्रिय हिस्सेदारी होने से अब भारत की तोल-मोल यानी बारगेन क्षमता बढ़ सकती है। इसका लाभ बड़ी ग्लोबल डील में अपनी शर्तें मनवाने में मिल सकता है। जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदा।

4. चीन, सऊदी का विकल्प
इस सम्मेलन में भारत ने एक तीर से दो निशाने साधे। बीते कुछ वर्षों में चीन ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में ग्लोबल मनमानी की कोशिश की है और इसका उपयोग अपने विस्तारवादी कार्यक्रम के लिए किया है। लेकिन चीन को चेकमेट करते हुए BRI की तर्ज पर भारत ने समानांतर रूप से भारत-मिडल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत करवा दी। उसी तरह तेल बाजार में ओपेक देशों की मोनोपॉली को तोड़ने के लिए बायो फ्यूल अलायंस का ऐलान भी कर दिया। इन दो पहलों का दुनियाभर में व्यापक असर होगा। भारत दोनों मोर्चों को अपने हिसाब से दिशा दे सकता है।

5. यह भारत का टाइम है
कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत न सिर्फ कहता आया है कि उसका टाइम आ गया है, बल्कि तमाम विकाससील देशों के हितों की आवाज के रूप में भी उभरा है। उसका क्लाइमेक्स इस सम्मेलन में दिखा। साउथ अफ्रीका-ब्राजील-इंडोनेशिया जैसे देश तमाम विकसित देशों के सामने न सिर्फ मजबूत बनकर उभरे, बल्कि संदेश देने में भी सफल रहे कि अब कोई अजेंडा एकतरफा तय नहीं होगा। भारत ने बहुत ही विनम्रमा से विकसित देशों को उनके लिए एकतरफा फैसला नहीं लेने का गंभीर संदेश भी दे दिया।

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