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गाजीपुर के किसान ‘माधुरी’ तरबूज से कर रहे मोटी कमाई, बिहार, झारखंड तक पहुंची मिठास

गंगा किनारे रेतीले खेतों में गाजीपुर और आसपास के क्षेत्रों के किसान इन दिनों तरबूज (Tarbooj Ki Kheti) की फसल से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। तरबूज उत्पादक किसानों की आजकल पहली पसंद पसंद माधुरी नस्ल का तरबूज (Madhiri Tarbooj) है।इस नस्ल के एक तरबूज का औसत वजन 8 से 12 किलो होता है। इसे उगाने वाले किसानों को मोटा मुनाफा हो रहा है।गाजीपुर के गंगा पार इलाके जिसमें भदौरा दिलदारनगर और गहमर शमिल है के किसान इन दिनों तरबूज की फसल उगा मोटा मुनाफा कमा रहे हैं ।इस इलाके के किसान लीज पर जमीन लेकर तरबूज और खरबूज के साथ ही लौकी, भिंडी, कद्दू, खीरा और ककड़ी आदि की खेती कर रहे हैं। गहमर गांव के रहने वाले प्रशांत की मानें तो उन्होंने प्रयोग के तौर पर इस साल अपने खेतों में तरबूज की खेती कराई है।

कब तैयारा हो जाती है फसल

बनारस से माधुरी नस्ल के तरबूज के बीज को लाकर उन्होंने अपने खेतों में बोया है। उन्होंने बताया कि जानकारी करने पर उन्हें मालूम हुआ कि माधुरी नस्ल के तरबूज के छिलके पतले होते हैं। एक फल की औसत वजन 8 से 12 किलो के बीच होता है। इस नस्ल को खेतों में बीज लगाए जाने के बाद 70 से 75 दिनों में फसल तैयार हो जाती है ।

तरबूज की बुआई में कितना आता है खर्चा

प्रशांत के अनुसार प्रति बीघा तरबूज बोने का खर्च लगभग 18 हजार के करीब आता है। जून के महीने से फलों की अंतिम रूप से हार्वेस्टिंग(तुडाई) शुरू हो जाती है। उन्होंने बताया कि स्थानीय मार्केट के साथ ही तरबूज को किसान मिलकर बड़े ट्रक के माध्यम से वाराणसी, बिहार और झारखंड भेजते हैं।जिसे उन्हें लोकल मार्किट की तुलना में बेहतर रेट मिल जाता है। इसके साथ ही साथ वाराणसी के प्रसिद्ध पहाड़िया फल मंडी के जरिए बड़े व्यापारी भी तरबूज की बल्क(थोक) में खरीदारी के लिए संपर्क करते हैं।

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