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पारंपरिक बीजों को बचाने की अनोखी पहल, किसान शंकर लंगाटी की सफलता की कहानी.
बेलगावी: जहां आधुनिक खेती में हाइब्रिड बीजों का दबदबा है, वहीं कर्नाटक के किसान शंकर हनुमंत लंगाटी ने देसी बीजों को बचाने और बढ़ावा देने की जिम्मेदारी खुद उठाई है।
उन्होंने 260 पारंपरिक चावल की किस्मों को संरक्षित किया है और अपनी खुद की मंडी स्थापित कर आर्थिक रूप से समृद्धि हासिल की है।
मुख्य बिंदु:
- शंकर लंगाटी 2006 से पारंपरिक बीजों को संरक्षित कर रहे हैं।
- उन्होंने 25 किस्मों से शुरुआत की और अब 260 प्रकार के चावल उगा रहे हैं।
- विभिन्न राज्यों से दुर्लभ चावल की किस्में इकट्ठा की हैं।
- उनकी खेती पूरी तरह जैविक है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
- धान के अलावा चना, मूंग, गेहूं और सब्जियां भी उगाते हैं।
- डेयरी फार्मिंग और मछली पालन से अतिरिक्त आय प्राप्त करते हैं।
- पहले आर्थिक तंगी में थे, लेकिन अब खुद का बाजार और वाहन हैं।
- किसानों को उचित मूल्य पर बीज उपलब्ध कराते हैं और उनकी उपज खरीदते हैं।
- परंपरागत चावल के अलावा देसी दालें और अनाज भी संरक्षित कर रहे हैं।
- अपने खेत पर ही गोदाम और बिक्री केंद्र स्थापित किया है।
- हर गुरुवार धारवाड़ में गांधी शांति प्रतिष्ठान में उत्पाद बेचते हैं।
- प्राकृतिक खाद और जैविक उर्वरकों का उपयोग कर लागत कम करते हैं।
- चावल की 40 से अधिक दुर्लभ किस्में उपलब्ध कराते हैं।
- खुदरा बाजार से ज्यादा कीमत पर किसानों से फसल खरीदते हैं।
- चावल के डंठल से हस्तनिर्मित उत्पाद भी बनाते हैं।
- उनका खेत बेलगावी से 55 किमी और कित्तूर से 11 किमी दूर स्थित है।
- प्रत्यक्ष बिक्री से किसानों को अधिक लाभ दिलाने की वकालत करते हैं।
- खेती की यह अनूठी पहल अन्य किसानों के लिए प्रेरणादायक है।
- स्थानीय फसलों को संरक्षित कर पारंपरिक कृषि को पुनर्जीवित कर रहे हैं।
- उनका मानना है कि जैविक खेती से ही खेती का भविष्य सुरक्षित है।



