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पाकिस्तान को देख लीजिए ट्रूडो साहब! क्यों कनाडा को पश्चिम का आतंकिस्तान बनाने पर तुले हैं?

ट्रूडो ने भारत पर आरोप लगाकर खालिस्तानी समर्थकों के साथ अपने घनिष्ठ राजनीतिक संबंधों और अपनी सरकार की हिंसा में शामिल होने से ध्यान हटाने की कोशिश की है। ट्रूडो के बेबुनियाद दावे से भारत के सामने मुंह बाए खड़ी एक बड़ी समस्या छिप नहीं सकती। वह समस्या है- पांच अंग्रेजी भाषी देशों में खालिस्तानी चरमपंथियों को शरण दिया जाना जो खालिस्तान प्रदेश बनाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। भारत में सिखों के बीच खालिस्तान के विचार के बहुत कम समर्थक हैं, जैसा कि वॉशिंगटन स्थित प्रतिष्ठित प्यू रिसर्च सेंटर ने 2021 में जारी एक सर्वेक्षण में बताया है। सर्वेक्षण में पाया गया कि 95% सिख ‘भारतीय होने पर बहुत गर्व’ करते हैं। वास्तव में, 70% सिखों का मानना है कि ‘जो व्यक्ति भारत का अनादर करता है वह सिख नहीं हो सकता’। यहां तक कि कनाडा और अन्य अंग्रेजी भाषी देशों में भी खालिस्तान समर्थक सिखों की तादाद मुट्ठीभर ही है। फिर भी दो कारकों का एक नापाक गठजोड़ खालिस्तानी आतंकवाद को विदेशों में जीवित रख रहा है।

पहला है- पाकिस्तान की ओर से खालिस्तानियों को फाइनैंसिंग, समर्थन और संभावित प्रशिक्षण, जैसा कि हडसन इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में बताया गया है। कनाडा, यूके, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की भूमिका सबसे आश्चर्यजनक है, मानो 1985 में टोरंटो से एयर इंडिया की उड़ान पर खालिस्तानी चरमपंथियों की बमबारी से कोई सबक नहीं लिया हो, जिसमें सभी 329 लोग मारे गए थे। ये देश तब भी मुंह फेर लेते हैं जब खालिस्तानी चरमपंथी पश्चिमी धरती से उग्रवादी गतिविधियां बढ़ाते हैं, जिसमें जान से मारने की धमकियां और हिंसा के आह्वान शामिल हैं। उन देशों में सरकारों की निष्क्रियता ने चरमपंथियों को भारतीय राजनयिक मिशनों और हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ करने और भारतीय राजनयिकों को धमकाने के लिए प्रोत्साहित किया है।

ट्रूडो के आरोप से बहुत पहले भारत-कनाडा आपसी संबंधों को सबसे निचले स्तर पर ले गए। नई दिल्ली लगातार आग्रह कर रहा है कि अंग्रेजी भाषी देश अपने यहां भारत के खिलाफ निर्देशित खालिस्तानी उग्रवाद की बढ़ती लहर को नियंत्रित करे। बदले में भारत को जो मिला, वह बहुत दुखद आश्चर्य था- लंदन में भारतीय उच्चायोग पर आतंकवादियों के धावा बोलने और सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर दोहरे हमलों से लेकर कनाडा में भारत विरोधी परेड तक, जिसमें पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के हत्यारों के समर्थन में नारे लग रहे थे।

खालिस्तानी उग्रवाद कनाडा में विशेष रूप से गंभीर है, जो बताता है कि क्यों इसका ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत खालिस्तान आंदोलन का वैश्विक केंद्र बन गया है। भारत का धैर्य खत्म हो गया तो पीएम नरेंद्र मोदी ने जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात में ट्रूडो की डांट-फटकार लगाई कि वो खालिस्तानी आतंकवादियों के प्रति नरम हैं। अपनी अल्पसंख्यक सरकार को बचाए रखने के लिए ट्रूडो को न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह के समर्थन पर निर्भर रहना पड़ता है, जो खालिस्तान समर्थक हैं। यानी वहां पूंछ कुत्ते को हिला रही है! ट्रूडो ने कनाडाई खालिस्तानियों को खुश करने के लिए भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है। बस एक उदाहरण लें, ट्रूडो ने नई दिल्ली के पास हाइवे जाम करने वाले किसानों का तो समर्थन किया, लेकिन बाद में निरंकुश शासक की शैली में कनाडा में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी। उन्होंने अपनी कोविड टीकाकरण नीति के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों को कुचल दिया और उनकी नाकाबंदी को आतंकवाद के समान सुरक्षा खतरा बताया।

फिर भी, ट्रूडो कनाडा में उन खूंखार आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार करते हैं जो भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं। हिंसक चरमपंथियों को शरण देना कनाडा और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरनाक है क्योंकि एक दिन ऐसा आ सकता है जब कनाडाई खालिस्तानी आतंकवादी कनाडा के भीतर या किसी अन्य पश्चिमी देश में बड़ा आतंकवादी हमला करें। खालिस्तानी आतंकवादियों को शरण देने का कनाडा का रिकॉर्ड ‘जैसे बाप, वैसा बेटा’ की कहावत का शानदार उदाहरण है। ट्रूडो के पिता, पूर्व पीएम पियरे ट्रूडो ने 1982 में इंदिरा गांधी के बाबर खालसा प्रमुख तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण के अनुरोध को ठुकरा दिया था, जो कनाडा की आधिकारिक जांच के अनुसार एयर इंडिया विमान बमबारी का मास्टरमाइंड बन गया था। आज ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तानी चरमपंथियों और आपराधिक गिरोहों के बीच बढ़ते गठजोड़ से गैंगवॉर में हत्याएं हुई हैं।

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