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महाराष्‍ट्र सरकार के ‘खजाने की चाबियां’ क‍ितनी अहम, अजित दादा उसी चक्कर में क्यों फंस गए? इसके पीछे 3 बड़े कारण

अजित पवार ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाया और वरिष्ठ नेता शरद पवार से बगावत कर सीधे विपक्षी बेंच से सत्ता की कुर्सी हासिल कर ली। उन्होंने अपने और अपने विधायकों के लिए महत्वपूर्ण व‍िभाग पाने के लिए सीधे दिल्ली की ओर रुख किया और ‘मलाईदार’ महकमा झटक ल‍िया। एकनाथ शिंदे और उनके विधायकों ने अजित पवार को वित्तीय हिसाब-किताब पाने से रोकने के लिए खूब जंग की। इसके बावजूद दादा अपनी राजनीतिक शक्ति का इस्‍तेमाल करके राज्य के ‘खजाने की चाबियां’ अपने पास रखने में सफल हो गए। खास बात यह है कि पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार में, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार में और अब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में दादा ने वित्त मंत्री का पद संभालने का गौरव हासिल किया है।

दरअसल एकनाथ शिंदे की बगावत में शिवसेना विधायकों ने यह कहकर नाता तोड़ा था कि जब एमवीए सरकार में थे तो अजितदादा फंड नहीं दे रहे थे। लेकिन एक साल के अंदर ही समय ने अपना बदला ले लिया है। वित्त दादा के पास लौट आया है तो शिंदे गुट के विधायकों के पास उनकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं है। इसलिए इस बात की चर्चा जोरों पर है कि शिंदे गुट के विधायक अकथनीय और असहनीय हो गए हैं।

दादा के लिए वित्त मंत्री पद पाना क्यों जरूरी था?
2019 में अजित पवार ने सुबह होते ही उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन समय पर योजना न बन पाने के कारण उन्हें दोबारा घर लौटना पड़ा। डेढ़ साल तक ठीक से सरकार चलाने के बाद शिंदे की बगावत के कारण ठाकरे सरकार गिर गई। फिर अजित पवार ने लगभग एक साल तक विपक्षी दल के नेता का दायित्व निभाया। लेकिन महत्त्वाकांक्षी राजनीति और सामने उप मुख्यमंत्री पद के चलते दादा ने बीजेपी के साथ जाने का फैसला किया।

अज‍ित की ताकत क्‍या है?
2019 में अजित पवार के साथ उंगलियों पर गिने जा सकने भर के विधायक भी नहीं थे लेकिन अब अजित पवार के पास करीब 31 विधायकों की ताकत है। अगर हम इन विधायकों को अपने साथ रखना चाहते हैं तो उन्हें किसी न किसी रूप में ताकत देना जरूरी है। दूसरी ओर यह तय है कि दादा ‘साहब’ गुट के विधायकों को लालच देकर अपनी ओर मिलाएंगे। इसलिए, इस काम को हास‍िल करने के लिए वित्त व‍िभाग के अलावा कोई अन्य महकाम नहीं हो सकता है।व‍िधायकों को देंगे मनमाफ‍िक बजट
अज‍ित पवार के ग्रुप में बड़ी संख्या में विधायक चीनी मिलें चलाते हैं। कई विधायकों के मन में चीनी मिलों को लेकर सवाल हैं। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए ही कुछ विधायक दादा के साथ चले गए हैं। तो उन्हें ताकत देने के लिए दादा ने आर्थिक हिसाब-किताब अपने पास ल‍िया है। वहीं, दादा कई विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्य शुरू करने के लिए बड़ी धनराशि देकर चुनाव से पहले राजनीतिक हवा बदलने की कोशिश कर सकते हैं।

अज‍ित पवार को नहीं लगे आरोप

शिंदे की बगावत के बाद विपक्षियों ने 50 करोड़ लेने का आरोप लगाया था लेकिन दादा के विद्रोह के बाद वह आरोप नहीं लगा। ऐसे में दादा का इरादा विकास कार्य कर अपने गुट के खिलाफ बने नकारात्मक माहौल को बदलने का है। दूसरी ओर, चुनाव का सामना करने में केवल एक साल बचा था। ऐसे में ‘महत्वाकांक्षी परियोजना’ शुरू करने के लिए खजाने की चाबियां होना आवश्यक था, इसलिए दादा अंत तक वित्त पर अटके रहे।

दादा की ‘अर्थ’ शक्ति बचाएगी NCP विधायकों को!
विरोधियों ने बार-बार आरोप लगाया है कि दादा अन्य दलों के विधायकों की तुलना में विधायकों को पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि अजित पवार के पास आर्थिक हिसाब-किताब होने के बाद वह अपनी पसंद के विधायकों या अपनी पार्टी के विधायकों को आर्थिक मजबूती प्रदान करते हैं। यह तय है कि संबंधित विधायक और अजित पवार यह बताने की कोशिश करेंगे कि दादा के साथ गए 31 विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र को भारी धनराशि देने का हमने जो निर्णय लिया वह कैसे सही था। वहीं, दादा इन विकास कार्यों को दिखाकर ‘वोटर राजा’ से अपने विधायकों को दोबारा चुनने की अपील करेंगे।

पार्टी विस्तार के लिए चाहिए ‘पैसा’
किसी भी पार्टी का अंतिम लक्ष्य अंततः सत्ता की कुर्सी पर बैठना होता है। अजित पवार को सत्ता की कुर्सी मिल गई लेकिन बीजेपी जैसी महाशक्ति का हाथ हाथ में होते हुए भी हम मजबूत रहें, ये राजनीतिक चालाकी दादा के पास जरूर है। इसलिए अजित पवार के सामने पार्टी विस्तार और ज्यादा से ज्यादा विधायक चुनने की चुनौती होगी। अजित पवार बचे हुए एक साल में विधायकों को आवश्यक धनराशि और आवश्यक ताकत देकर विधानसभा में वापस लाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। साथ ही जो लोग साथ नहीं आए दादा उन्हें बजट दिखाकर अपने साथ लाने की कोशिश करेंगे। इससे विधायकों की संख्या तो अपने आप बढ़ेगी ही, वैकल्पिक तौर पर पार्टी का विस्तार भी होगा।

अज‍ित पवार का क‍िससे बैर
अजित पवार के महागठबंधन में आने के बाद एकनाथ शिंदे के समर्थकों में काफी नाराजगी थी। सत्ता में तीसरे हिस्सेदार के आने से अब उन्हें एक रोटी खाने की बजाय आधी रोटी ही खानी पड़ेगी। इससे शिंदे गुट परेशान है। शिंदे गुट उस असहजता से उबरेगा या नहीं, दादा के वित्त मंत्री पद की चर्चा शुरू हो गई है। चर्चा शुरू होते ही शिंदे गुट के विधायकों ने इसका कड़ा विरोध किया। मौके-मौके पर उन्होंने मुख्यमंत्री पर दादा को वित्त मंत्री का पद नहीं देने का दबाव भी डाला लेकिन अंत में मुख्यमंत्री ने ‘ऊपर से आदेश है’ कहकर समर्थक विधायकों को समझा दिया।

मिशन लोकसभा और फडणवीस का त्‍याग
‘मिशन लोकसभा’ को सामने रखते हुए बीजेपी ने पहले ठाकरे की पार्टी में सेंध लगाई और अब एनसीपी में भी सेंध लगा दी है। फडणवीस को इस बात पर काम करना होगा कि दो दिग्गज नेताओं एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ सरकार चलाते हुए वह अगले एक साल तक सत्ता पर ‘कब्जा’ कैसे बरकरार रखेंगे। इसके लिए वे मौके-मौके पर दोयम दर्जे का पद लेने के लिए भी तैयार रहेंगे। हालांकि, फडणवीस इस बात की सावधानी जरूर बरतेंगे कि ‘मोती’ नाक से भारी न हो।

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