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अमेरिका का ‘गोल्ड कार्ड’ वीज़ा – भारतीय पेशेवरों के लिए अवसर या बाधा?
नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित 'गोल्ड कार्ड' वीज़ा योजना भारतीय नीति विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बन गई है।
यह योजना अमेरिका में भारतीय ग्रेजुएट्स को काम करने का अवसर देगी, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे विदेशी आवेदकों की संख्या में कमी आ सकती है।
मुख्य बिंदु:
- गोल्ड कार्ड वीज़ा के तहत अमेरिकी कंपनियां प्रतिष्ठित भारतीय ग्रेजुएट्स को नियुक्त कर सकेंगी।
- इस वीज़ा के लिए $5 मिलियन (करीब ₹44 करोड़) का निवेश जरूरी होगा।
- विशेषज्ञों का मानना है कि यह मौजूदा EB-5 वीज़ा का स्थान ले सकता है।
- EB-5 वीज़ा के तहत $8 लाख के निवेश और 10 नौकरियों की शर्त थी।
- विशेषज्ञ योगेश गुप्ता के अनुसार, बहुत कम अमेरिकी कंपनियां $5 मिलियन खर्च करके विदेशी कामगारों को रखेंगी।
- यह वीज़ा H-1B वीज़ा पर असर नहीं डालेगा, जो भारतीय पेशेवरों को मिलता है।
- नीति विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिकी सरकार को ज्यादा राजस्व मिलेगा लेकिन विदेशी कामगारों की संख्या कम होगी।
- JNU के शोधकर्ता संजीत कश्यप ने कहा कि यह योजना अमीर विदेशी और उच्च कुशल पेशेवरों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
- इससे भारतीय पेशेवरों के लिए नागरिकता का रास्ता आसान हो सकता है, लेकिन H-1B बैकलॉग पर असर नहीं पड़ेगा।
- विशेषज्ञों की चिंता है कि गलत ढंग से पैसा कमाने वाले लोग भी इस योजना का दुरुपयोग कर सकते हैं।
- गोल्ड कार्ड वीज़ा से भारतीयों के लिए अवसर सीमित हो सकते हैं।
- अमेरिकी कंपनियों के लिए इतनी बड़ी रकम निवेश करना चुनौतीपूर्ण होगा।
- यदि वीज़ा प्रक्रिया पारदर्शी नहीं हुई, तो यह योजना विवादों में आ सकती है।
- अभी तक अमेरिकी प्रशासन ने इस योजना की पूरी जानकारी नहीं दी है।
- ट्रंप प्रशासन H-1B वीज़ा को जारी रखने के पक्ष में है।
- भारतीय पेशेवरों के लिए H-1B अब भी मुख्य विकल्प रहेगा।
- इस वीज़ा से केवल अमीर निवेशकों को ही फायदा होगा।
- अमेरिका में नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा और बढ़ सकती है।
- कई देशों के धनी नागरिक इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
- नीति विशेषज्ञों ने इस वीज़ा के प्रभावों की पूरी समीक्षा करने की सलाह दी है।
- गोल्ड कार्ड वीज़ा से भारत-अमेरिका संबंधों पर भी असर पड़ सकता है।



