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तेजस्वी-लालू और कांग्रेस ताकते रहे, NDA का बड़ा खेल, भगदड़ के गणित में उलझी बिहार की सियासत

बिहार में आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में भगदड़ की स्थिति है। 12 फरवरी से शुरू होकर 29 फरवरी तक चले विधानसभा के बजट सत्र में महागठबंधन को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। सत्र शुरू होने के पहले ही दिन महागठबंधन के तीन विधायकों ने सत्ताधारी खेमे के साथ बैठना पसंद किया तो पखवाड़ा पूरा होते ही तीन और विधायकों ने भी महागठबंधन से अलग होने का फैसला किया। सत्र के अंतिम दिन एक और विधायक ने भी पाला बदल लिया। अब तक महागठबंधन छोड़ कर एनडीए के साथ जाने वाले विधायकों की संख्या सात हो गई है।

एनडीए खेमा पसंद किया

सबसे पहले आरजेडी के तीन विधायकों ने पाला बदला। इनमें बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद, जेल में बंद बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी और प्रहलाद यादव शामिल थे। दूसरी खेप में महागठबंधन के तीन और विधायक एनडीए के साथ आ गए। इनमें कांग्रेस के दो और आरजेडी के एक विधायक शामिल थे। कांग्रेस छोड़ने वाले विधायक सिद्धार्थ सौरभ और मुरारी गौतम को सत्ता सत्तापक्ष रास आया तो आरजेडी की विधायक संगीता देवी भी उनके साथ सत्ता पक्ष में बैठीं। बजट सत्र के आखिरी दिन आरजेडी के भभुआ से विधायक भरत बिंद ने भी पाला बदल लिया। वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और डेप्युटी सीएम सम्राट चौधरी की गाड़ी से ही विधानसभा पहुंचे। सदन में प्रवेश करते ही वे सत्ता पक्ष में जाकर बैठ गए।

एक और विधायक के जाने की चर्चा

अब हिसुआ से कांग्रेस की विधायक नीतू सिंह ने भी पार्टी छोड़ने का इशारा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर भाजपा उन्हें नवादा से लोकसभा का उम्मीदवार बना दे तो वे पार्टी छोड़ने को तैयार हैं। उनका ऐसा कहना कांग्रेस के लिए साफ इशारा है कि उनका मन भी अब बदल चुका है। किसी भी वक्त उनके पाला बदल की सूचना सामने आ सकती है। बजट सत्र शुरू होने के पहले ही आरजेडी और कांग्रेस को अपने विधायकों के टूटने का अंदेशा था। आरजेडी ने अपने विधायकों को तेजस्वी के आवास पर घेर कर रखा था तो कांग्रेस ने अपने विधायकों को हैदराबाद में नजरबंद कर दिया था। महागठबंधन के इन दोनों दलों ने विधायकों की बाड़ेबंदी तो की, लेकिन यह किसी काम का साबित नहीं हुआ। भागने वाले भागे जा रहे हैं।

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