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मेरी तरफ से मिच्छामी दुक्कड़म… आखिर पीएम मोदी ने किससे और किस बात के लिए मांगी माफी

देश ने एक और नया इतिहास बनते देख लिया है। पुरानी संसद को विदा देकर सभी सांसद नई संसद में प्रवेश कर चुके हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आह्वान किया कि नई भवन है तो भाव भी नया होना चाहिए, भावना भी नई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गणेश चतुर्थी और संवत्सरी के अवसर पर नई संसद का गृह प्रवेश हुआ है, इसलिए हमें इन दोनों पर्वों की मूल भावनाओं को भी हमेशा के लिए आत्मसात कर लेना चाहिए। पीएम मोदी ने संवत्सरी के पर्व का हवाला देकर जाने-अनजाने में हुई अपनी किसी भी गलती के लिए सांसदों और देशवासियों से माफी भी मांगी। उन्होंने कहा, मेरी तरफ से सबको ‘मिच्छामी दुक्कड़म।’

नई संसद भवन से पीएम मोदी का मिच्छामी दुक्कड़म

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद में अपने पहले संबोधन में जैन धर्म से संबंधित भाव ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘आज संवत्सरी का भी पर्व है। ये अपने आप में एक अद्भुत परंपरा है। इस दिन को एक प्रकार से क्षमा वाणी का भी पर्व कहते हैं। आज मिच्छामी दुक्कड़म कहने का दिन है। ये पर्व मन से, कर्म से, वचन से अगर जाने-अनजाने किसी को भी दुख पहुंचाया है तो उसकी क्षमा याचना का अवसर है। मेरी तरफ से भी पूरी विनम्रता के साथ, पूरे हृदय से आप सभी को, सभी संसद सदस्यों को और देशवासियों को मिच्छामी दुक्कड़म।’

उन्होंने आगे कहा, ‘आज जब हम एक नई शुरुआत कर रहे हैं तब हमें अतीत की हर कड़वाहट को भुलाकर आगे बढ़ना है। इस भावना के साथ हम यहां से हमारे आचरण, हमारी वाणी, हमारे संकल्पों से जो भी करेंगे, वो देश के लिए, राष्ट्र के एक-एक नागरिक के लिए प्रेरणा का कारण बनना चाहिए और हम सबको इस दायित्व को निभाने के लिए भरसक प्रयास भी करना चाहिए।’

दलगत भावना से ऊपर उठने की अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से राष्ट्रहित में दलगत भावना से ऊपर उठकर व्यवहार करने की अपील की है। उन्होंने कहा, ‘यत भावो, तत भवति। यानी हम जैसी भावना करते हैं, वैसा ही घटित होता है। हमारी भावना जैसी होगी, हम वैसे ही बनते जाएंगे। भवन बदला है, मैं चाहूंगा- भाव भी बदलना चाहिए, भावना भी बदलनी चाहिए। यह संसद दलहित के लिए नहीं है। हमारे संविधान निर्माताओं ने इतने पवित्र संस्थान का निर्माण दलहित के लिए नहीं, सिर्फ और सिर्फ देशहित के लिए किया।’

मिच्छामी दुक्कड़म का मतलब जानिए

ध्यान रहे कि ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ जैन धर्म से जुड़ा है। श्वेतांबर समाज हर वर्ष ‘अष्टाह्निका’ नाम से आठ दिन का पर्युषण पर्व मनाता है। पर्युषण पर्व के दौरान ही ‘विश्व मैत्री दिवस’ यानी संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। इस पर्व के समापन पर जैन धर्म के सभी अनुयायी एक-दूसरे से क्षमा प्रार्थना करते हैं। जैनियों का दिगंबर संप्रदाय ‘उत्तम क्षमा’ तो श्वेतांबर संप्रदाय ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर जाने-अनजाने में हुई किसी भी गलती के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। मिच्छामी दुक्कड़म प्राकृत भाषा का शब्द है। मिच्छामी का अर्थ क्षमा जबकि दुक्कड़म का अर्थ दुष्ट कर्म यानी बुरे कर्म होता है। इस तरह मिच्छामी दुक्कड़म का मतलब होता है- बुरे कर्मों के लिए क्षमा प्रार्थना।

संवत्सरी पर्व के बारे में कितना जानते हैं आप?

वहीं, संवत्सरी का मूल अर्थ कालचक्र से है। कालचक्र के अनुसार समय की सुई जैसे पहले नीचे और फिर ऊपर की ओर गति करती है, उसी तरह से काल को दो वर्गों- असर्पिणी काल और उत्सर्पिणी काल में विभाजित किया गया है। अवसर्पिणी काल में ऊपर से नीचे उतरते हुए धर्म की हानि होती है तो उत्सर्पिणी काल में धर्म का उत्थान होता है।

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