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ग्लोबल साउथ क्या है जिसका लीडर है भारत, पीएम मोदी से लेकर बाइडन तक करते हैं जिक्र, चीन की नजर

ग्लोबल साउथ एक ऐसा शब्द है, जिसका इन दिनों खूब जिक्र हो रहा है। ग्लोबल साउथ शब्द यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से ही चर्चा में है। ब्रिक्स से लेकर, जी7 और जी20 तक इस शब्द की गूंज सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अक्सर अपने भाषणों में ग्लोबल साउथ का नाम लेते हैं। पूरी दुनिया में भारत को ग्लोबल साउथ का नेता माना जाता है, जो इसके हितों को लेकर आवाज बुलंद कर रहा है। वहीं, चीन ग्लोबल साउथ के नेता के तौर पर भारत को हटाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि ग्लोबल साउथ क्या है? इसमें कौन-कौन से देश शामिल हैं और इसका उद्देश्य क्या है।

ग्लोबल साउथ क्या है?

ग्लोबल साउथ शब्द पहली बार शीत युद्ध के दौरान अमीर, आमतौर पर औद्योगिक रूप से विकसित उत्तरी देशों और दक्षिण के विकासशील देशों के बीच व्यापक आर्थिक विभाजन को बताने के लिए इस्तेमाल किया गया था। ग्लोबल साउथ में ऐसे देश शामिल हैं, जो विकासशील हैं। इनमें से कई 1960 और 1970 के दशक तक पश्चिमी यूरोपीय औपनिवेशिक का हिस्सा थे। एक अमेरिकी लेखक अकादमिक और राजनीतिक कार्यकर्ता कार्ल ओग्लेस्बी को व्यापक रूप से ग्लोबल साउथ शब्द का उसके समकालीन अर्थ में उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति होने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1969 में वियतनाम युद्ध के संदर्भ में ऐसा किया था और यह बताया था कि ग्लोबल साउथ देशों पर ग्लोबल नार्थ देशों का प्रभुत्व कैसे था।

ग्लोबल साउथ का अर्थ क्या है

ग्लोबल साउथ का तात्पर्य कम आय वाले देशों या अमीर उत्तरी देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम सामाजिक-आर्थिक और औद्योगिक विकास वाले देशों से है। एक ग्लोबल साउथ का देश होने के कई निहितार्थ हो सकते हैं, जिनमें उच्च शिशु मृत्यु दर और निम्न जीवन प्रत्याशा से लेकर निम्न शिक्षा दर, उच्च स्तर की गरीबी और विदेश में बेहतर जीवन की तलाश में प्रवास करने की उच्च प्रवृत्ति शामिल होती है। इसके अलावा आर्थिक और सामाजिक समस्याएं, साथ ही, अमीर, औद्योगिक रूप से विकसित देशों की पैदा की गई कई समस्याओं जैसे कि अपशिष्ट और प्रदूषण अक्सर ग्लोबल साउथ के देशों को प्रभावित करती है।

ग्लोबल साउथ में कौन से देश हैं?

ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ देशों के बीच विभाजन को दर्शाने वाले अधिकांश समकालीन मानचित्र मोटे तौर पर कर्क रेखा से सटे देशों के अलावा कई अन्य देशों को समाहित किए हुए हैं। इसमें मैक्सिको और अधिकांश कैरेबियन, दक्षिण अमेरिका, अधिकांश अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के देश शामिल है। हालांकि, जापान, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ग्लोबल साउथ का हिस्सा नहीं हैं। ग्लोबल साउथ दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 40 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है।

ग्लोबल साउथ पर कब्जा करना चाहता है चीन?

शीत युद्ध की समाप्ति तक चीन ग्लोबल साउथ के सदस्य देश था। इसके बाद उसने अपनी आबादी के बड़े हिस्से को गरीबी से बाहर निकालने की दिशा में नाटकीय प्रगति की है। ऐसे में चीन ग्लोबल साउथ का सदस्य नहीं है। हालांकि, वह खुद को ग्लोबल साउथ के नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। चीन की कोशिश ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुके भारत को हटाकर खुद को स्थापित करने की है। इसके लिए वह ब्रिक्स जैसे समूहों की मदद ले रहा है। ब्रिक्स के विस्तार के लिए बार-बार जोर देना चीन की इसी चाल का हिस्सा था, हालांकि भारत ने इसे पहले ही भांप लिया और मौके पर उसकी चाल को नाकाम कर दिया।

ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुका है भारत

जनवरी 2023 में भारत ने पहली बार वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी की। यह एक वर्चुअल मंच है, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली चिंताओं, हितों और प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श करने और विचारों-समाधानों का आदान प्रदान करना है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण ग्लोबल साउथ देशों की चिंताओं और प्राथमिकताओं को संबोधित करने के लिए एकजुट होकर आवाज को बुलंद करना भी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, शिखर सम्मेलन सफल रहा, जिसमें लगभग 125 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और यह सभा विकासशील दुनिया के नेताओं और मंत्रियों का अब तक का सबसे बड़ा डिजिटल सम्मेलन बन गई। भारत ने जी20 की अध्यक्षता में भी ग्लोबल साउथ को सबसे ज्यादा महत्व दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में ग्लोबल साउथ की आवाज उठाते रहते हैं।

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