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ट्रूडो ही नहीं, भारत-कनाडा संबंधों के खराब होने के पीछे इस लेडी का भी हाथ! रसूख जान हो जाएंगे हैरान

सिख अलगाववाद और खालिस्तान आंदोलन के कारण भारत-कनाडा संबंध सबसे निचले स्तर पर हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में आरोप लगाया है कि भारत खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल है। इसके बाद कनाडा ने भारत के एक शीर्ष राजनयिक पवन कुमार राय को निष्कासित करने का आदेश दे दिया। इधर, भारत ने भी देरी नहीं की और ट्रूडो के आरोपों का सिरे से खंडन कर दिया। अपने राजनयिक के निष्कासन के जवाब में भारत ने भी नई दिल्ली में मौजूद कनाडाई उच्चायुक्त को तलब किया और 3 मिनट के भीतर उनके एक शीर्ष राजनयिक को देश छोड़ने का फरमान थमा दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि अचानक भारत-कनाडा के संबंध इतने खराब कैसे हो गए। क्या सिर्फ जस्टिन ट्रूडो के जिद के कारण दोनों देशों के बीच ऐसे हालात बने हैं।

कनाडा में कितने प्रभावशाली हैं सिख

कनाडा में भारत के बाद सबसे ज्यादा सिख आबादी रहती है। ये सिख कनाडा की राजनीति में अहम भूमिका रखते हैं। ऐसे में कनाडा में सरकार बनाने के लिए सिख समुदाय को लेकर चलना सभी राजनीतिक दलों के लिए जरूरी हो जाता है। सिखों की अहमियत इस बात से भी लगा सकते हैं कि जस्टिन ट्रूडो ने जब अपने पहले कार्यकाल में कैबिनेट का गठन किया तो उसमें चार सिख मंत्रियों को शामिल किया। सिखों के वोटों को पाने के लिए कनाडाई पीएम को मजाक में जस्टिन ‘सिंह’ ट्रूडो भी कहा जाता है। जस्टिन ट्रूडो ने 2015 में अपनी पहली सरकार के गठन के बाद कहा था कि उनकी कैबिनेट में जितने सिख शामिल हैं, उनने भारत की कैबिनेट में भी नहीं हैं। कनाडा में भारतीय मूल के लोगों का दबदबा इतना है कि 2015 में कनाडाई हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए 19 लोग चुने गए थे, जिनमें 17 ट्रूडो की लिबरल पार्टी से थे।

ट्रूडो की लिबरल पार्टी की सिखों को लेकर खास रणनीति

कनाडा सिख चरमपंथियों को एक सोची समझी रणनीति के तहत प्रश्रय दे रहा है। इसे लिबरल पार्टी के पूर्व मुखिया और जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे एलियट ट्रूडो ने तैयार किया था। उन्होंने सत्ता पाने के लिए सिखों को अपने पक्ष में मिलाया, क्योंकि कनाडा के मूल लोगों के बाद यही कम्युनिटी सबसे ज्यादा संख्या में थी। सिख समुदाय के लोग स्थानीय कारोबार में भी थे, जो पियरे एलियट ट्रूडो की लिबरल पार्टी को चंदा दे सकते थे। 2015 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद जस्टिन ट्रूडो ने अपने पिता की उसी रणनीति को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने कैबिनेट में सिखों को बड़े पैमाने पर शामिल किया और उनकी हर हरकतों को नजरअंदाज भी किया। ट्रूडो ने अपने इस काम के लिए तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा उप मंत्री जोडी थॉमस को चुना। जोडी थॉमस ही जस्टिन ट्रूडो और खालिस्तानी आतंकवादियों के बीच संबंधों की सबसे बड़ी कड़ी बनकर उभरीं।

कनाडा में सिखों को कौन उकसा रहा

राष्ट्रीय सुरक्षा की उपमंत्री रहने के दौरान जोडी थॉमस ने पूरे कनाडा में खालिस्तान आंदोलन को प्रश्रय दिया और सुरक्षा प्रदान की। इसका इनाम उन्हें 2017 में मिला, जब जस्टिन ट्रूडो ने जोडी थॉमस को कनाडा का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिया। इसके बाद भी जोडी थॉमस भारत विरोधी चाल से बाज नहीं आईं। उन्होंने भारत पर दबाव बनाने के लिए सिखों को उकसाना शुरू कर दिया। कनाडा जानता है कि सिख अलगाववाद की आग लगाकर वह भारत को दबाव में ला सकते हैं, जिससे इंडो-पैसिफिक में उन्हें बड़ा फायदा हो सकता है। जोडी थॉमस ने जून 2023 में ही भारत के खिलाफ जमकर जहर उगला और कनाडा के मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा दिया। जोडी थॉमस ने कैनेडियन ग्लोबल अफेयर्स इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में कहा था कि जब मैं विदेशी हस्तक्षेप और आर्थिक सुरक्षा के बारे में बात करता हूं, तो अब मैं कई स्टेट एक्टर्स और नॉन स्टेट प्रॉक्सी के बारे में बात कर रही हूं। इसमें रूस, ईरान और भारत शामिल हैं।

जोडी थॉमस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप

जोडी थॉमस के बेटे को अवैध तरीके से बड़ा मिलिट्री कॉन्ट्रैक्ट दिलाने का आरोप लग चुका है। 2021 में जोडी ने 77 अरब डॉलर की विवादित युद्धपोत प्रोजेक्ट पर सवाल उठाने को लेकर कनाडा के रक्षा उद्योग के अधिकारियों को चेतावनी दी थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि उनका बेटा अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनी लॉकहीड मॉर्टिन के लिए काम करता है। बाद में लॉकहीड मार्टिन को 77 अरब डॉलर के युद्धपोत का यह कॉन्ट्रैक्ट मिल गया था। जोडी के बेटे एंड्रयू कोट्स मार्च 2019 से लॉकहीड मार्टिन के साथ काम कर रहे हैं। उनकी कंपनी को 2019 में कनाडा की नौसेना के लिए युद्धपोत निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था।

बेटे की पोल खोलने पर सेना को दी थी धमकी

जब लॉकहीड मार्टिन के साथ काम करने वाले एनएसए जोडी थॉमस के बेटे का मामला सामने आया, तो कनाडा के नेशनल डिफेंस ने कैनेडियन सरफेस कॉम्बैटेंट प्रोजेक्ट, आर्कटिक और ऑफशोर पेट्रोल शिप या अन्य रक्षा परियोजनाओं पर उसकी बातचीत से निपटने के लिए विभाग द्वारा दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद 2021 में जॉडी ने कनाडा के रक्षा उद्योग को फटकार लगाई थी। कनाडा की रक्षा उद्योग से जुड़े लोग इस डील को विदेशी कंपनी को दिए जाने पर आपत्ति जता रहे थे। उनका कहना था कि इससे घरेलू रोजगार पैदा करने का बड़ा अवसर खत्म हो जाएगा। कनाडा की रक्षा मंत्रालय से जुड़े कई अधिकारियों ने इस परियोजना की कीमत पर भी सवाल उठाया था।

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