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न याददाश्त, न ही कोई नातेदार हर दिन बढ़ रहा बिल, इस डॉक्टर का कैसे हो इलाज?

ये कहानी ऐसी है जिसमें मानवता और कानून दोनों की परीक्षा हो रही है। एक महिला 6 साल से एक अस्पताल के बेड पर लाइलाज बीमारी का इलाज करवा रही है। विडंबना ये है कि न तो इस महिला का कोई रिश्तेदार न ही याददाश्त। एक भाई था उसको भी कोरोना ने लील लिया। मामला दिल्ली हाईकोर्ट के पास है। अदालत ने मानवता के नाम पर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की तो अस्पताल को उस रास्ते के इस्तेमाल पर आपत्ति हो गई है और उसने एक अपील दाखिल कर दी है। उनकी जाती हुई याददाश्त की तरह ही उनके बारे में कई जानकारी भी अभी धुंधली है। आखिर वह हजारों किलोमीटर दूर न्यूयॉर्क से भारत कैसे आईं? किस परिस्थिति में वह अस्पताल पहुंची। उनके करीबी शायद अभी भी उन्हें ढूंढ रहे होंगे। 84 साल की गॉयनोलॉजिस्टस डॉ सुंदरी जी भगवानानी इस वक्त दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में बेड पर पड़ी हैं। वह 2017 से ही इस अस्पताल में भर्ती हैं। वो अल्जाइमर के अडवांस स्टेज से जूझ रही हैं। कोर्ट नवंबर में इस मामले की आगे सुनवाई करेगा।

भाई उठा रहा था बहन का खर्चा

2019 में भगवानानी और कनाडा में रहने वाले उनके 75 वर्षीय भाई मोहन अपनी बहन की देखरेख कर रहे थे। लेकिन 2021 में उनकी भी कोरोना के कारण मौत हो गई थी। इससे पहले मोहन ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील कर अपने बहन के अकाउंट का एक्सेस मांगा था ताकि वो भगवानानी का इलाज जारी रख सकें। उन्होंने कोर्ट में कहा था कि वह अपनी बहन के इलाज के लिए अबतक मूलचंद अस्पताल को 50 लाख रुपये दे चुके हैं। मोहन ने कोर्ट में कहा था कि वो संसाधनों से जूझ रहे हैं और वो खुद भी बूढ़े हैं। उन्होंने कोर्ट से अपनी बहन का गार्जियन बनाने की मांग की थी। लेकिन कहते हैं न कि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इससे पहले कि कोर्ट मोहन की याचिका पर कोई आदेश पारित करता उनकी कनाडा में मौत हो गई। इसके बाद मामला और पेचीदा हो गया।


भाई के साथ हो गई अनहोनी

मोहन की मौत के बाद कोर्ट और उलझ गया। अपनी बहन की मदद करने वाला एकमात्र मोहन भी दुनिया छोड़ चुके हैं। इसके बाद हाईकोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप किया और वकील मानिनी बरार (Manini Barar) को एमिकस नियुक्त किया ताकि किसी समाधान पर पहुंचा जा सके। कोर्ट ने इसका अलावा IHBAS को भी मरीज की स्थिति जांचने की जिम्मेदारी सौंपी है ताकि कुछ रास्ता निकाला जा सके।

नोबेल प्राइज की दावेदार रही थीं भगवानानी

हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव नरूला ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा याचिकाकर्ता डॉ भगवानानी से संबंधित हैं। वो एक मशहूर डॉक्टर रह चुकी हैं जिनको एक बार नोबेल प्राइज के लिए नामांकित तक किया गया था (हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई है)। दुर्भाग्य से वह 24 नवंबर 2017 से मूलचंद अस्पताल में भर्ती हैं और उनको एडवांस अल्जाइमर बीमारी है। कोर्ट ने इसके बाद कुछ आदेश भी जारी किए।

भाई ने बहन के अकाउंट को ऑपरेट करने की मांगी थी इजाजत

जस्टिस नरूला ने कहा कि मरीज के हालात की गंभीरता को देखते हुए उनके भाई दिवंगत मोहन ने अपनी बहन के अकाउंट के इस्तेमाल करने की इजाजत मांगी थी ताकि उनके इलाज का खर्च उठा सकें। कोर्ट ने भगवानानी के बढ़ते मेडिकल खर्चे का जिक्र करते हुए कहा कि कोई कानूनी गार्जियन नहीं होने के कारण सबसे ज्यादा जरूरी उनका ठीक होना है। इसके बाद मरीज के मृतक भाई मोहन के वकील गणेशन सुबैयन ने कहा कि इसके लिए कुछ जरूरी काम करना होगा।

जिलाधिकारी को मरीज का बनाया गया गार्जियन

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस साल मई में संबंधित जिलाधिकारी को भगवानानी का गार्जियन बनाने का आदेश दिया था और उनको मरीज के अकाउंट को ऑपरेट करके अस्पताल के लिए पैसे रिलीज करने को कहा था। मेंटल हेल्थ ऐक्ट एंड राइट्स टू पर्सन विद डिसऐबिलिटी की व्याख्या करते हुए बरार ने कहा था कि IHBAS से किसी नोडल पर्सन को मरीज के इलाज के लिए नियुक्त किया जा सकता है। ऐमिकस बरार की राय से सहमत होते हुए हाईकोर्ट कहा कि क्या मरीज को क्या घर या इसी तरह की सुविधा के साथ कहीं और रखा जा सकता है?

अधिकारियों ने कुछ रास्ता बताया

हाईकोर्ट के आदेश के बाद संबंधित जिलाधिकारी और IHBAS के डॉक्टर्स ने सामाजिक कल्याण विभाग के साथ पूरे केस का विश्लेषण किया और मरीज को CGHS स्कीम के तहत सुविधा देने की मांग की। अधिकारियों ने एक प्राइवेट रूम की भी पहचान कही जहां मरीज की अगले 3-4 महीने के लिए इलाज किया जा सकता है।

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