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चांद पर एक चूक और दक्षिण ध्रुव पर दम तोड़ देता चंद्रयान-3, इसरो ने किया कमाल, यूं बचाई ‘जान’

भारत ने चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतारकर इतिहास रच दिया है। विक्रम लैंडर से अब प्रज्ञान रोवर बाहर आकर चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास चहलकदमी कर रहा है। प्रज्ञान हर दिन चांद के रहस्‍यों को उजागर कर रहा है। चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर उतारने में अगर जरा सी भी चूक हो जाती तो वह हमेशा के लिए अंधेरे में गुम हो जाता और कभी धरती पर सपंर्क तक नहीं कर पाता। इस महासंकट की घड़ी में इसरो के वैज्ञानिकों ने कमाल कर दिया और चंद्रयान-3 को लक्षित लैंडिंग स्‍थल से मात्र कुछ दूरी पर ही इसे सफलतापूर्वक उतारकर इतिहास रच दिया। आइए जानते हैं पूरा मामला…

चंद्रयान-2 का चांद पर मलबा ढूंढने वाले शानमुगा सुब्रमण्‍यन के मुताबिक चंद्रयान-3 की लैंडिंग बहुत सटीक रही। चंद्रयान-3 के लक्षित और वास्‍तविक लैंडिंग साइट में अंतर केवल 358 मीटर का था। उन्‍होंने कहा कि इसरो के इंजीनियरों को सलाम जिन्‍होंने चांद की सतह पर तमाम बाधाओं के बाद भी चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक लैंडिंग कराई। शान ने कहा कि भविष्‍य के मिशनों में होने वाले किसी भी सटीक लैंडिंग के लिए इस तरह की सटीक लैंडिंग होना बेहद महत्‍वपूर्ण है।

चंद्रयान-3 से संपर्क नहीं कर पाते इसरो वैज्ञानिक

शानमुगा सुब्रमण्‍यन ने बताया कि चंद्रयान-3 की यह सटीक लैंडिंग इसलिए जरूरी थी कि अगर हमने लैंडिंग साइट को 1 या 2 किमी तक मिस कर कर दिया होता तो विक्रम लैंडर चंद्रमा के एक विशाल गड्ढे में चला जाता जहां स्‍थायी रूप से अंधेरा रहता है। इससे इसरो के वैज्ञानिक धरती से लाख जतन करने के बाद भी प्रज्ञान से संपर्क नहीं कर पाते और यह पूरा मिशन बर्बाद हो जाता। दरअसल, अगर चंद्रयान-3 अंधेरे वाले इलाके में उतरता तो उसे सूरज की रोशनी नहीं मिलती और इससे सोलर पैनल काम नहीं करते।

बिना ऊर्जा के प्रज्ञान धरती पर इसरो से संपर्क नहीं कर पाता। चंद्रयान-3 चांद के दक्षिण ध्रुव के पास जिस जगह पर उतरा है, उसे पीएम मोदी ने श‍िव शक्ति नाम दिया है। इस इलाके में चंद्रयान-3 सही से उतर सके इसके लिए वैज्ञानिकों ने इसरो के शोध केंद्र में एक कृत्रिम चांद बनाया था ताकि उसकी सॉफ्ट लैंडिंग को चेक किया जा सके। इस दौरान कई बार टेस्‍ट में चंद्रयान-3 सफल रहा। चांद के इस इलाके में अब प्रज्ञान ने खुदाई शुरू कर दी है। इस दौरान तापमान में बाहर और सतह के नीचे भारी अंतर देखने को मिला है जिससे वैज्ञानिक हैरान हैं।

अमेरिका से लेकर चीन तक चांद की दौड़ में शामिल

चांद का यह इलाका पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। इससे पहले साल 2009 में भारत ने पता लगाया था कि चंद्रमा के इस इलाके में पानी है। इसके बाद एक मून रेस पूरी दुनिया में शुरू हो गई है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अपने अर्तेमिस 3 मिशन के जरिए साल 2025 के आसपास इंसानों को चांद पर फिर से उतारने की तैयारी कर रही है। भारत भी अर्तेमिस मिशन का हिस्‍सा है। यही नहीं चीन अपना दूसरा रोवर भी साल 2024 में भेजने जा रहा है। चांद के इस इलाके में अगर बर्फ मिलती है तो दुनिया के लिए चंद्रमा पर बेस बनाने का रास्‍ता साफ हो जाएगा। यही नहीं इस चंद्रमा बेस की मदद से भविष्‍य में मंगल और अन्‍य ग्रहों की यात्रा के लिए रास्‍ता साफ हो सकता है। इसके अलावा हीलियम-3 को लेकर भी दुनिया में काफी हलचल है। यह हीलियम-3 भविष्‍य में ऊर्जा का बड़ा स्रोत बन सकता है।

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