बेंगलुरु, कर्नाटक: कर्नाटक की अदालतों में लंबित 13.86 लाख सिविल मामलों में से चेक बाउंस के मुकदमे सबसे ज्यादा हैं। यह स्थिति न केवल राज्य की न्यायिक प्रणाली पर भारी दबाव डाल रही है, बल्कि व्यावसायिक और वित्तीय विश्वास के लिए भी एक गंभीर चुनौती है। यह दिखाता है कि कैसे छोटे-छोटे वित्तीय विवादों से अदालतों में भारी बैकलाग हो गया है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इन मामलों के निपटान में देरी से न केवल वित्तीय विश्वास प्रभावित होगा, बल्कि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या भी बढ़ेगी। कानून की धारा 138 (चेक बाउंस) के तहत दर्ज ये मामले अक्सर लंबे समय तक चलते हैं, जिससे दोनों पक्षों को परेशानी होती है।
सरकार और न्यायपालिका को इस समस्या का समाधान करने के लिए नए कदम उठाने की जरूरत है। वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution) तंत्र, जैसे कि मध्यस्थता (mediation), इन मामलों को तेजी से निपटाने में मदद कर सकते हैं।


