Jharkhand

ऐसे कैसे पढ़ेगा झारखंड:राज्य गठन के वक्त 3 विवि, अब हो गए 9, छात्र 3 से 7 लाख हुए, पर प्रोफेसर 4000 से घटकर 2620 हो गई है

झारखंड गठन के समय राज्य में आरयू समेत सिर्फ तीन सरकारी यूनिवर्सिटी थी। तब पढ़ने वाले 3 लाख छात्रों के लिए 4000 प्रोफेसर थे। अब राज्य में 9 यूनिवर्सिटी हो गई है। छात्रों की संख्या भी 7 लाख तक पहुंच गई है। लेकिन, छात्रों के अनुपात में प्रोफेसर के न तो नए पद सृजित (समाजशास्त्र विषय को छोड़कर) किए गए और न ही रिटायर्ड हुए प्रोफेसरों के पदों पर नियुक्ति की गई।

अलबत्ता कार्यरत प्रोफेसरों की संख्या भी कम होकर 2620 हो गई है। राज्य गठन से लेकर अब तक प्रोफेसर के 4,200 पद सृजित हैं। इसमें से लगभग 1580 पद रिक्त हैं। इसका सीधा असर रिसर्च, क्लास समेत अन्य एकेडमिक वर्क पर पड़ रहा है। यही वजह है कि नैक की ग्रेडिंग में झारखंड की किसी भी यूनिवर्सिटी को ए या ए+ ग्रेड की सूची में जगह नहीं मिली है।

अस्थायी शिक्षकों की नियुक्ति को बढ़ावा

रांची विवि से संलग्न चार नए बने कॉलेजों की बिल्डिंग तो बना दी गई है, लेकिन एक भी स्थायी प्रोफेसर की नियुक्ति नहीं की गई। इसमें वीमेंस कॉलेज सिमडेगा, वीमेंस कॉलेज लोहरदगा, मॉडल डिग्री कॉलेज बानो, रांची और मॉडल डिग्री कॉलेज घाघरा शामिल हैं।

जानकारों का कहना है कि पिछले कई सालों से यूनिवर्सिटी प्रशासन ने अस्थाई शिक्षकों की नियुक्ति को परंपरा बना लिया है। सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।

4 वर्ष से 552 प्रोफेसरों की नियुक्ति लटकी

जेपीएससी द्वारा चार साल पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर के 552 पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी हुआ था, लेकिन आज तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है।

बताया जा रहा है कि इसके लिए अगले माह से इंटरव्यू किया जाएगा। पहले चरण में चार विषयों के लिए इंटरव्यू होगा। इसमें भूगोल, रसायन विज्ञान, भौतिकी और हो विषय शामिल है।

4 बड़े कारणों से जानिए क्यों नहीं हो रही स्थायी नियुक्ति

1. कम वेतन वाले शिक्षकों की नियुक्ति: असिस्टेंट प्रोफेसर को सरकार को कम से कम 80 हजार सेलरी देनी पड़ती है, जबकि अस्थायी प्रोफेसर को अधिकतम 36 हजार रु. सेलरी देनी होती है।
2.नियुक्ति में चहेतों को रखा, सीबीआई जांच: 2008 में 730 पदों पर नियुक्ति हुई, पर भ्रष्टाचार की वजह से केस सीबीआई में पहंुच गया, जिसके कारण 10 साल तक नियुक्ति नहीं हुई।
3.आरक्षण रोस्टर में नियुक्ति अटकी :13 साल बाद 2018 में प्रोफेसरों की नियुक्ति का विज्ञापन निकला, पर 2019 में आरक्षण रोस्टर की वजह से मामला सुप्रीम कोर्ट पहंुच गया, इसलिए प्रक्रिया रुक गई।
4.अपनों को लाभ देना: एचओडी के खाली पदों पर अपनों को एक्टिंग एचओडी बनाने में सहूलियत होती है। इसलिए विभागों में नई नियुक्ति नहीं कर रहे हैं।

कम अनुभवी पढ़ा रहे, रिसर्च स्तर गिरा

स्थायी प्रोफेसर की जगह अनुबंध शिक्षकों ने ले लिया है। इसका नुकसान यह है कि यूनिवर्सिटी में अपेक्षाकृत कम अनुभवी छात्रों को पढ़ा रहे। साथ ही पीएचडी करने वाले छात्रों को गाइड नहीं मिल पा रहा है।

नियमानुसार छात्रों को प्रोफेसर, असोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर ही गाइड कर सकते हैं। चूंकि राज्य में प्रोफेसरों की संख्या कम है इसलिए कई छात्रों को गाइड नहीं मिल रहे हैं।

Source : Dainik Bhaskar

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