ट्यूनीशिया: जैतून के अवशेष से ऊर्जा बना रहे इंजीनियर खलीफी.
उत्तरी ट्यूनीशिया के एक जैतून के बागान में इंजीनियर यासीन खलीफी का छोटा वर्कशॉप इन दिनों चर्चा में है, जहां जैतून के अवशेष को मूल्यवान ऊर्जा स्रोत में बदला जा रहा है।
खलीफी के अनुसार, जैतून के तेल निष्कर्षण के बाद बचा यह गाढ़ा अवशेष आमतौर पर व्यर्थ माना जाता था। लेकिन अब इसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
परंपरागत रूप से ट्यूनीशिया के ग्रामीण परिवार इस अवशेष को खाना पकाने और गर्मी के लिए जलाते रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय जैतून परिषद के अनुसार, 2024-25 में ट्यूनीशिया दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जैतून तेल उत्पादक देश बन सकता है, जिसकी अनुमानित उपज 3.4 लाख टन होगी।
जैतून तेल उत्पादन के दौरान बड़ी मात्रा में अपशिष्ट निकलता है। इसे देखते हुए खलीफी ने 2022 में ‘बायोहिट’ नामक स्टार्टअप की शुरुआत की।
खलीफी ने बताया कि जैतून का अवशेष लंबे समय तक जलता रहता है, जिससे उनके दिमाग में इसे ईंधन में बदलने का विचार आया।
‘बायोहिट’ का लक्ष्य सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं है, बल्कि जंगलों की कटाई रोकने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना भी है।
उनकी वर्कशॉप में कर्मचारी ट्रक भरकर जैतून का अवशेष लाते हैं, जिसे मशीनों में डालकर छोटे बेलनाकार ब्रिकेट्स में बदला जाता है।
इन ब्रिकेट्स को एक महीने तक धूप और ग्रीनहाउस में सुखाया जाता है, फिर पैकिंग कर बिक्री के लिए तैयार किया जाता है।
खलीफी ने इस आइडिया पर 2018 में काम शुरू किया था। उन्होंने यूरोप का दौरा किया, लेकिन वहां उपयुक्त मशीन नहीं मिली।
वापस आकर उन्होंने चार साल तक विभिन्न मोटर और यांत्रिक उपकरणों पर प्रयोग किए।
2021 में उन्होंने ऐसी मशीन बनाई, जो केवल आठ प्रतिशत नमी वाले ब्रिकेट्स तैयार करती है, जिससे लकड़ी के मुकाबले कार्बन उत्सर्जन कम होता है।
‘बायोहिट’ के ब्रिकेट्स का उपयोग ट्यूनीशिया के रेस्टोरेंट्स, गेस्टहाउस और स्कूलों में किया जा रहा है।
खलीफी के अनुसार, उनके उत्पादन का लगभग 60% हिस्सा फ्रांस और कनाडा को निर्यात किया जा रहा है।



