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मैरिटल रेप पर फिर क्यों छिड़ी है बहस, क्या अपनी पत्नी को छूना भी बलात्कार हो सकता है?

इंटीमेसी यानी अतरंगता पति-पत्नी के रिश्ते का अहम पहलू है, लेकिन अगर पति-पत्नी के बीच रेप की बात कही जाए तो शायद कुछ लोग इसे मानने से इनकार करें, लेकिन मैरिटल रेप पर हमारे देश में एक बार फिर चर्चाएं हैं। मैरिटल रेप यानी जब पति पर अपनी ही पत्नी के रेप के आरोप लगे। जब पति ही पत्नी का शारीरिक शोषण करे। अब आप कहेंगे कि पति-पत्नी के बीच तो शारीरिक संबंध होते ही है तो फिर ये रेप कैसे हुआ।

क्या पति कर सकता है पत्नी का रेप?

जब पत्नी की मर्जी के खिलाफ या जोर जबरदस्ती से कोई पति अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाएं तो इसे बलात्कार की श्रेणी में रखा जाता है, लेकिन भारत में फिलहाल इसपर कोई कानून नहीं है। अब जान लीजिए एक बार फिर क्यों इस बात पर बहस छिड़ी है। दरअसल पिछले हफ्ते लोकसभा में तीन बिल पेश किए गए थे, जिसमें महिला सुरक्षा और रेप को लेकर भी नए कानून थे । गृह मंत्री अमित शाह ने महिलाओं की सुरक्षा को अहम बताते हुए इन बिल को पेश किया था। इनमें रेप को लेकर कड़े कदम उठाए गए थे, लेकिन बावजूद इसके इन बिलों में मैरिटल रेप को लेकर कोई कानून नहीं लाया गया।

मैरिटल रेप पर क्या कहता है देश का कानून?

मैरिटल रेप अभी भी अपवाद है। आईपीसी की धारा 375 के एक्सेप्शन क्लॉज 2 के अनुसार मैरिटल रेप अपराध नहीं है। इनमें धारा 63 के अपवाद 2 में कहा गया है कि “किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही पत्नी, जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम नहीं हो, उसके साथ यौन संबंध या यौन कृत्य रेप नही है। ऐसा माना जा रहा था कि शायद इस बार इसपर भी कोई नया कानून बने, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।

महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में की अपील

देश के महिला संगठन लंबे समय से मैरिटल रेप के खिलाफ कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। पहले मैरिटल रेप को लेकर मामला दिल्ली हाईकोर्ट में डाला गया था, लेकिन वहां से कोई निर्णय नहीं हो पाया था जिसके बाद महिला संगठन और वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर जल्द सुनवाई का आश्वासन दिया था। हालांकि अदालत ने इस पर सुनवाई को लेकर कोई तारीख नहीं दी है।

मैरिटल रेप को लेकर बंटा हुआ है समाज

दरअसल मैरिटल रेप को लेकर हमारे देश में दो मत हैं। जहां एक तरफ महिला संगठन इसे महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जरूरी मानते हैं वहीं एक वर्ग का मानना है कि मैरिटल रेप जैसे कानून के आने के बाद इसका गलत इस्तेमाल किया जाएगा, क्योंकि शादी से जैसे रिश्ते में ये तय करना कि कब रेप हुआ है और कब नहीं बेहद मुश्किल है। इस पर एक मत ये भी है कि इस तरह की बातें शादी जैसे पवित्र रिश्ते पर भी आंच आएगी।

सरकार ने फिर साफ की अपनी मंशा

सरकार भी लगातार इस कानून को न लाने के पक्ष में नजर आ रही है। साल 2017 में मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था, ‘मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी’। सरकार ने ये तर्क भी दिया था कि मैरिटल रेप पतियों को सताने के लिए आसान हथियार हो सकता है। अब एक बार फिर केन्द्र सरकार ने मैरिटल रेप मामले पर कोई कानून न लाकर अपनी मंशा साफ कर दी है कि वो मैरिटल रेप को जुर्म मानने को तैयार नहीं हैं।

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