दवा नहीं उम्मीद भी खरीदते हैं…दौलत की भूख में जिंदगी से खेलने वाले इन हैवानों को सरकार कब सिखाएगी सबक
नकली यह शब्द शायद आज असली पर भी भारी पड़ रहा है। नकली घी, नकली तेल, नकली मसाला, नकली मोबाइल, नकली टीवी, नकली मिठाई… इसे इंसान अब हकीकत मान चुका है। यह चीजें हमारे रोजमर्रा के जीवन में शामिल हो चुकी हैं और लोग कहीं न कहीं इसकी मार झेलने को भी मन ही मन तैयार हो गए हैं। यह भी खतरनाक है लेकिन अब जो देश भर से हाल के दिनों में खबरें आ रही हैं उससे तो जीवन के साथ ही साथ मानवता पर भी बहुत बड़ा ग्रहण लगने वाला है। दिल्ली पुलिस ने नकली दवा बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया है। हद तो तब हो जाती है जब यह पता चलता है कि 100 रुपये खर्च कर ये लोग तीन लाख में कैंसर की दवा बेच रहे थे। कैंसर इस बीमारी का नाम ही सुनकर चिंता सातवें आसमान पर पहुंच जाती है। बीमार मरीज और उनके परिवार के लोगों को कुछ समझ नहीं आता। वह अपना सबकुछ दांव पर लगाकर यह चाहते हैं कि कि बस किसी भी तरह ठीक हो जाएं। कैंसर का इलाज पहले से ही महंगा है और अब इस नकली की मार से जिंदगी से तो खिलवाड़ हो ही रहा है साथ ही उम्मीद भी मर रही है। दवा उम्मीद है और इंसान अपना सबकुछ बेचकर भी आखिरी दम तक उस उम्मीद को खरीदने की कोशिश करता है।
देश की राजधानी दिल्ली में जब यह हाल है तो बाकी जगहों के लिए क्या कहा जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में कभी कीमोथेरेपी की नकली दवा तो कभी कुछ और। नकली दवा सिर्फ कैंसर ही नहीं बल्कि दूसरी बीमारियों के लिए भी खतरनाक है। लेकिन बात कैंसर की इसलिए क्योंकि घर बेचकर भी लोग इस उम्मीद से इलाज कराते हैं कि किसी प्रकार ठीक हो जाएं। सोचिए उन मरीजों का क्या हुआ होगा जिन्होंने ये नकली दवाएं ली होंगी। इनमें से कुछ मरीज तो नकली दवाओं की वजह से कैंसर की जंग हार गए होंगे और आखिर में परिवार के लोग इसे नियति मान बैठे होंगे।
आमतौर पर यह कहा जाता है कि हमने प्रयास किया बाकी ऊपर वाले की मर्जी… लेकिन अफसोस यहां मर्जी नीचे वालों की चल रही है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम कैंसर के इलाज के दौरान होने वाली कीमोथेरेपी की नकली दवा बनाने और इसे बेचने वाले सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया है। मोती नगर में पैकिंग यूनिट थी। ये लोग नामी कंपनियों की दवा की शीशी 5000 रुपये में खरीद कर 100 रुपये की नकली दवा भरते थे। इसके बाद उसी दवा को 1 से 3 लाख रुपये में बेचते थे। नकली दवाओं के कई दुष्प्रभाव हैं। मरीजों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो है ही आर्थिक रूप से भी देख जाए तो यह काफी नुकसानदायक है।



