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दिवाली के दिन भी दौड़ता रहेगा वो, आपके घर खुशियों का डिब्बा लाने वाले का कैसे शुक्रिया करेंगे आप

राजधानी दिल्ली-एनसीआर की फिजा में प्रदूषण भले घुल गया हो, पर दिवाली का माहौल फीका नहीं हुआ है। बाजार गमक रहे हैं। घर का कोना-कोना धुल गया है। खुशी बनकर रोशनी हमारे घर-आंगन, बालकनी को जगमगा रही है। यही तो त्योहार का आनंद है। सभी गिफ्ट खरीद रहे हैं, बच्चे नए कपड़े पाकर खुश हैं। इस खुशी के माहौल में क्या आपने कभी सोचा है कि एक क्लिक पर खुशियों का डिब्बा हमारे घर के गेट तक पहुंचाने वाला वो ‘हेलमेटमैन’ कितना खुश होगा? उसे तो शायद दिवाली पर छुट्टी भी नहीं मिलेगी, यह बताकर कि डिमांड ज्यादा आ सकती है। आप समझ गए होंगे, किसकी बात हो रही है। आप नए कपड़े ऑर्डर करें, सजावट के सामान हों, ऑनलाइन किसी एप पर कम रेट में मिले त्योहार के उपहार हों ये सब आपके घर कौन लाता है? वही एक हेलमेटमैन जिसका लक्ष्य जल्द से जल्द सुरक्षित तरीके से आपके सामान को पहुंचाना होता है। कभी आप जल्दी में होते हैं, कोई दो शब्द सुना भी देता है, कंपनी में ऊपर बैठा बॉस फटकार लगा देता है लेकिन वह बिना शिकायत अपनी दिहाड़ी करता जाता है। उसके लिए दिवाली का मतलब तो बिजनस या कहें काम से है। रात के 11 बज जाएं लेकिन उसे लगता है कि आज घरवालों के लिए ज्यादा रुपये जोड़ लूं। ज्यादा ऑर्डर आएगा तो सैलरी समय पर और पूरी मिलेगी। हर डिलिवरी पर कमीशन है तो आपके यहां आने से एक कमीशन और मिल गया। ऐसे लोगों के पास त्योहार के लिए ज्यादा समय नहीं होता है। ये ओला, जोमैटो, स्विगी, जेप्टो या ऐसे किसी भी एप से संबद्ध हो सकते हैं।

ज्यादा काम मतलब परिवार के लिए समय नहीं

ज्यादा काम मतलब परिवार के लिए समय नहीं

45 साल की आनंद कुमारी पर तीन बच्चों की जिम्मेदारी है। वह रोज सुबह 9 बजे एक ऑनलाइन डिलीवरी पार्टनर के रूप में अपना काम शुरू कर देती हैं। घर के रोजमर्रा के काम खत्म करने के बाद वह अपना टू-वीलर लेकर निकल जाती हैं और शहर को नापने लगती हैं। यह भी एक तरह की दौड़ ही तो है। उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार TOI से कहा, ‘नियमित दिनों में मैं 40-50 पैकेज बांटती हूं लेकिन त्योहार के समय, खासकर जब ऑनलाइन बिक्री ज्यादा होती है तो हर दिन डिलीवरी के लिए 50 से 65 पार्सल होते हैं।’ वह सामान्य रूप से सड़क पर 8-9 घंटे बिताती हैं। त्योहार के समय डिलीवरी की डिमांड पूरी करने के लिए उन्हें ज्यादा समय तक काम करना पड़ता है। कभी-कभी 10 घंटे भी लग जाते हैं। वह कहती हैं कि त्योहारों का मतलब ट्रैफिक जाम का मौसम है। ट्रैफिक में फंसने का मतलब है अपने घर बच्चों के पास देरी से पहुंच पाऊंगी। उसके बाद घर का काम करना होता है। ऐसे में अपने घर में उत्सव मनाने के लिए तैयारी करने का समय ही नहीं मिलता। ज्यादा काम के लिए एकमात्र प्रोत्साहन 10,000-15,000 रुपये से थोड़ी ज्यादा कमाई है। शायद मिठाइयों का एक डिब्बा मिल जाए या कोई उदार ग्राहक हो तो वह कुछ बख्शिश के तौर पर हाथ पर रख दे। बस इतना ही।

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