कुछ बड़ा होने वाला है… PoK बॉर्डर से ‘जासूस’ ने भेजा था खुफिया इनपुट, करगिल वॉर की इनसाइड स्टोरी
करगिल की लड़ाई को 24 साल हो रहे हैं। मई से जुलाई 1999 के बीच पाकिस्तानी फौज ने कश्मीर के करगिल क्षेत्र में दुस्साहस किया था। मुशर्रफ की बातचीत भी इंटरसेप्ट की गई लेकिन दिल्ली में सरकार और सीनियर अफसरों ने उस अलर्ट को इग्नोर कर दिया था। पढ़िए पूरी कहानी। जासूसों का काम कुछ इस तरह का होता है कि कभी-कभार उन्हें क्रेडिट भी नहीं मिलता। अक्सर जब कोई घटना घटती है तो कह दिया जाता है कि इंटेलिजेंस फेल्योर था। भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी लड़ाई करगिल में लड़ी गई थी, जो परवेज मुशर्रफ ने जबर्दस्ती थोपी थी। बहुत से लोग ऐसा मानते आए हैं कि उस समय भारत का इंटेलिजेंस फेल रहा था। क्या सच में ऐसा था? सच्चाई कुछ अलग है। उस समय लेह में तैनात एक जासूस ने अपने चीफ के जरिए सरकार को ‘रेड सिग्नल’ भेजा था। लेकिन उस खुफिया इनपुट को गंभीरता से नहीं लिया गया। RAW के पूर्व चीफ विक्रम सूद बताते हैं कि अक्टूबर 1998 में ही एजेंसी ने एक गुप्त रिपोर्ट भेजी थी कि वहां सैनिकों की मूवमेंट हो रही है और ऐसा लग रहा है कि वे कुछ बड़ा प्लान कर रहे हैं। खुफिया एजेंसी ने ‘युद्ध’ शब्द का भी इस्तेमाल किया था और कहा था कि यह जल्द हो सकता है। भारत के जासूसों ने खबर दी थी कि पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को शांतिपूर्ण वाली लोकेशन जैसे मांगला, गुजरांवाला और लाहौर से पीओके भेजा है। इंटेलिजेंस का आकलन था कि कुछ न कुछ होने वाला है। उस समय किसी को नहीं पता था कि क्या होने वाला है। छह महीने से भी ज्यादा समय पहले बता दिया गया था कि कुछ महीने से ऐसा चल रहा है और हम यह कह सकते हैं कि वे कुछ प्लान कर रहे हैं। पूर्व रॉ चीफ सूद ने कहा कि लेकिन इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया।



