यह 2021 की तुलना में 59% की भारी कमी है।
किसानों में जागरूकता बढ़ने और सरकार की विभिन्न पहलों के कारण पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है। हालांकि, एक जलवायु विशेषज्ञ एस.एन. मिश्रा का मानना है कि पंजाब में 70% की कमी का दावा थोड़ा अतिरंजित हो सकता है। किसान उपग्रहों की निगरानी से बचने के लिए रात के समय पराली जला रहे हैं।
यह खबर क्यों महत्वपूर्ण है:
यह खबर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है और यह जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। इस अध्ययन से पता चलता है कि सरकार और किसानों के प्रयासों से इस समस्या को कम किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु:
आईसीएआर ने पराली जलाने की घटनाओं में कमी की पुष्टि की है।
किसानों में जागरूकता बढ़ने और सरकारी पहलों के कारण यह संभव हुआ है।
एक जलवायु विशेषज्ञ का मानना है कि पंजाब में 70% की कमी का दावा अतिरंजित हो सकता है।
पराली जलाने से वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन बढ़ता है।
इस समस्या को हल करने के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है।
अतिरिक्त जानकारी:
यह अध्ययन सितंबर से नवंबर 2024 के बीच किया गया था। उपग्रहों के माध्यम से पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी की गई थी।
निष्कर्ष:
यह अध्ययन एक सकारात्मक संकेत है और यह दर्शाता है कि पराली जलाने की समस्या को हल किया जा सकता है। हालांकि, अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।



