
उन्होंने इसे कानूनी पेशे की स्वायत्तता पर सीधा हमला बताया।
स्टालिन ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार की तमिल भाषा के प्रति नफरत इस बिल में भी दिखती है।
उन्होंने कहा, “इस बिल के जरिए बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु एंड पुडुचेरी का नाम बदलकर बार काउंसिल ऑफ मद्रास किया जा रहा है।”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “तमिलनाडु सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हमारी पहचान है!”
मुख्यमंत्री ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा कि 2014 से बीजेपी सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने का प्रयास कर रही है।
स्टालिन ने कहा कि पहले सरकार ने NJAC (नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन) के जरिए न्यायिक नियुक्तियों पर नियंत्रण पाने की कोशिश की।
फिर कॉलेजियम की सिफारिशों को नजरअंदाज कर न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण को प्रभावित किया गया।
अब बार काउंसिल पर नियंत्रण पाने की कोशिश की जा रही है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमजोर होगी।
उन्होंने कहा कि बिल का ड्राफ्ट आने के बाद स्वतःस्फूर्त विरोध और भारी विरोधाभास के कारण सरकार को इसे वापस लेना पड़ा।
हालांकि, सरकार ने कहा है कि इसे दोबारा संशोधित कर फिर से लाया जाएगा, जो निंदनीय है।
उन्होंने इस बिल की पूरी तरह से वापसी की मांग की और कानूनी पेशे की स्वायत्तता बनाए रखने की अपील की।
स्टालिन ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि तमिलनाडु की जनता अपनी पहचान और अधिकारों से कोई समझौता नहीं करेगी।
तमिलनाडु सरकार इस मुद्दे को लेकर संसद से लेकर सड़क तक विरोध दर्ज कराएगी।
उन्होंने कहा कि डीएमके पार्टी लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई जारी रखेगी।
बार काउंसिल के सदस्य और वकील भी इस बिल के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।
इस मामले पर केंद्र सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
अब देखना होगा कि केंद्र सरकार इस बिल पर क्या रुख अपनाती है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह बिल लागू हुआ, तो न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।
स्टालिन के बयान के बाद तमिलनाडु में इस मुद्दे पर राजनीतिक गर्माहट तेज हो गई है।