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नाम: घंटेवाला, उम्र: 225 साल, पता: चांदनी चौक… दिल्ली की मिठाई की वो पहली दुकान, जिसके चर्चे बॉलिवुड तक थे

दिल्ली में बेशक अब यह दुकान बंद हो चुकी है, लेकिन शायद ही कोई ऐसी पीढ़ी मौजूद हो जिसने इस दुकान का नाम न सुना हो। 225 साल तक दिल्ली की एक पहचान बनी रहने वाली यह दुकान थी- ‘घंटेवाला’। घंटेवाला की मिठाई की दुकान जितनी मशहूर थी, उससे ज्यादा मशहूर था इस दुकान पर बिकने वाला सोहन हलवा। पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित घंटेवाला दुकान साल 2015 में बंद हो चुकी है लेकिन चांदनी चौक और पुरानी दिल्ली की गलियों में यह याद बनकर आज भी जिंदा है।घंटेवाला को साल 1790 में लाला सुखलाल जैन ने शुरू किया था। यह दुकान जिस समय शुरू हुई थी उस वक्त अमेरिका में जॉर्ज वॉशिंगटन राष्ट्रपति थे, वियना कि गलियों में मोजार्ट के संगीत की धूम सुनाई देती थी, फ्रांस में फ्रेंच रेवोल्यूशन चल रहा था, ब्रिटेन में किंग जॉर्ज-III और दिल्ली में मुगल साम्राज्य था और शाह आलम-II शासक थे। इस दुकान के खुलने की कोई एक कहानी नहीं है। ‘घंटेवाला’ नाम कैसे और क्यों पड़ा, इसके नाम का इतिहास तीन अलग-अलग कहानियों के साथ बुना हुआ है। पहली कहानी है घंटेवाला के संस्थापक लाला सुखलाल जैन की। वह आमेर से दिल्ली आए थे और यहां उन्होंने ठेले पर मिश्री-मावा बेचना शुरू किया। लोगों का आकर्षित करने के लिए वह हाथों में घंटी लेकर उसके बजाते और घर-घर जाकर अपनी मिठाई बेचते थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया वे लोकप्रिय होते गए और लोग उन्हें ‘घंटेवाला’ के नाम से जानने लगे। बाद के सालों में उन्होंने दुकान स्थापित की और इसका नाम ‘घंटेवाला’ रखा।

घंटेवाला के नाम से जुड़ी दूसरी कहानी है, मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के दरबार की। कहते हैं शाह आलम ने एक बार अपने दरबार के सेवकों से ‘घंटे के नीचे वाली दुकान’ (घंटी के नीचे की दुकान) से मिठाई लाने के लिए कहा। समय के साथ यह घंटे के नीचे वाली दुकान का नाम छोटा होकर ‘घंटेवाला’ नाम हो गया। उन दिनों पुरानी दिल्ली इलाके की आबादी बहुत कम थी और लाल किले में रहने वाले मुगल शासक दुकान के पास बने स्कूल में बजने वाली घंटी तक सुन सकते थे। दुकान के नाम की आखिरी कहानी भी मुगल काल से जुड़ी थी। कहते हैं एक हाथी के गले में घंटी बंधी हुई थी और वह सड़क पर चलता था तो घंटी की आवाज सुनाई आती थी। हाथी मिठाई की दुकान के सामने रुकता और अपनी गर्दन को इस तरह हिलाता था कि घंटी जोर-जोर से बजती थी, बस इसी से दुकान को ‘घंटेवाला’ के नाम से जाना जाने लगा।

मिठाई का चलता था जादू

शहर में हेरिटेज वॉक करने वाले लेखक और डॉक्युमेंट्री मेकर सोहेल हाशमी कहते हैं, ‘लाला सुखलाल जैन मिठाई बनाना जानते थे और हमेशा बेहतरीन सामग्री का इस्तेमाल करते थे। 1857 के विद्रोह से पहले से ही दुकान काफी प्रसिद्ध थी और इसे लेकर उस समय ‘दिल्ली उर्दू अखबार’ ने ने यहां तक लिखा था कि कैसे घंटेवाला दुकान की मिठाइयों ने अलग-अलग क्षेत्रों के विद्रोहियों को नरम कर दिया और वे लड़ने की अपनी सारी इच्छाशक्ति खो बैठे।

सोहन हलवा की दीवानगी

घंटेवाला की सबसे मशहूर मिठाई की बात करें तो वह था सोहन हलवा। अगर यह कहा जाए कि दुकान ‘सोहन हलवा’ के लिए ही जानी जाती थी तो यह गलत नहीं होगा। सोहन हलवा के अलावा घंटेवाला की पिस्ता बर्फी और मोतीचूर की लड्डू, कलाकंद, कराची हलवा जैसे बारहमासी बिकने वाली मिठाइयों लोगों की पसंदीदा बनी रहीं। इसके अलावा मक्खन चूरा जैसे स्नैक्स भी काफी लोकप्रिय थे। लेकिन साल 2015 में सदियों पुराने इतिहास के इस पन्ने का अंत हो गया और घंटेवाला के वर्तमान मालिक और जैन परिवार के वंशज को दुकान को बंद करने का कठिन फैसला लेना पड़ा।

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