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मिसेज गांधी क्या मैं इस्तीफा दे दूं… 1971 के उस बड़े फैसले से पहले सैम बहादुर ने ऐसा क्यों कहा था?

एक सोल्जर के लिए उसकी जान से भी ज्यादा कीमती होती है उसकी इज्जत, उसकी वर्दी। और एक सोल्जर अपनी वर्दी की इज्जत के लिए अपनी जान भी दे सकता है… ‘सैम बहादुर’ फिल्म के ट्रेलर में यह डायलॉग आपको जोश से भर सकता है। फिल्म में विकी कौशल भारत के जिस जांबाज अफसर का किरदार निभा रहे हैं उनका जीवन हर भारतीय के लिए प्रेरणा है। उनका जज्बा फौलादी था, सोच स्पष्ट और दिलेरी ऐसी कि दुश्मन नाम सुनते ही कांपने लगे। जब भी पाकिस्तान के दो टुकड़े होने और बांग्लादेश बनने का जिक्र होगा सैम बहादुर याद आएंगे। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने साल 2002 में अपने ग्रैंडसन को दिए विशेष इंटरव्यू में बांग्लादेश वॉर शुरू होने की कहानी बताई थी। 1971 में भारत के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे सैम ने बताया कि गरीब बंगाली पठान और पंजाबी मुसलमानों के खिलाफ क्या कर सकते थे? ऐसे में वे भारत की तरफ आने लगे। और मिसेज गांधी ने मुझसे कहा कि देखो पश्चिम बंगाल के चीफ मिनिस्टर ने क्या मैसेज भेजा है हजारों शरणार्थी दाखिल हो रहे हैं। असम के सीएम, त्रिपुरा के सीएम… उन्होंने (तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी) मेरी तरफ देखते हुए कहा कि आप इस पर क्या कर रहे हैं?

सैम ने जवाब दिया- कुछ नहीं। मैं इस पर क्या कर सकता हूं। उन्होंने कहा कि मैं चाहती हूं कि आप कुछ करो। सैम ने कहा- आप क्या चाहती हैं कि मैं करूं। इंदिरा गांधी ने झट से कहा कि मैं चाहती हूं कि आप ईस्ट पाकिस्तान की तरफ मार्च कीजिए। सैम ने कहा कि इसका मतलब युद्ध होगा। इंदिरा ने कहा कि मुझे फर्क नहीं पड़ता अगर यह युद्ध होगा। सैम ने कहा- क्या आप तैयार हैं? मैं निश्चित रूप से नहीं हूं।

जब सैम मानेकशॉ और इंदिरा गांधी के बीच यह हाईलेवल बैठक हो रही थी, तारीख थी 23 अप्रैल 1971 और सैम ने बताया कि आप जानती हैं कि हिमालय के दर्रे खुल रहे हैं। अगर चीनियों ने हमें अल्टीमेटम दे दिया? सैम ने आगे कहा कि मॉनसून भी कुछ दिनों में आ जाएगा। और जब दुनिया के इस हिस्से में बारिश होगी तो नदियां महासागर का रूप ले लेती हैं। अगर आप एक किनारे पर हैं तो आप दूसरा किनारा नहीं देख सकते। हमारी मूवमेंट केवल सड़क पर सीमित होगी। मौसम के कारण एयरफोर्स हमारी मदद नहीं कर सकेगी। और अगर मैं आगे जाता हूं तो मैं आपको गारंटी देता हूं कि हम 100 प्रतिशत हारेंगे। युद्ध के हालात समझाने के बाद सैम ने मिसेज गांधी से कहा, ‘क्या आप अब मुझे आदेश देंगी?’ उन्होंने कहा- ठीक है। इसके बाद घोषणा की कि कैबिनेट की फिर से बैठक 4 बजे होगी। उस मीटिंग से सभी लोग बाहर निकलने लगे। सैम जूनियर थे तो सबसे पीछे जाने लगे। इंदिरा ने उन्हें रोका- चीफ आप रुकिए। सैम ने झट से कहा- आप कुछ भी बोलें, क्या मैं स्वास्थ्य, मेंटल या फिजिकल कारणों से अपना इस्तीफा दे दूं? इंदिर ने कहा- ओह, सैम बैठ जाओ।

युद्ध रणनीति के माहिर सैम

इंदिरा ने कहा कि आपने अभी जो कहा है क्या वह सच है? सैम ने कहा हां। फाइट करना मेरा जॉब और फाइट जीत के लिए। क्या करूं? इंदिरा मुस्कुराईं। बोलीं, ओके सैम जब आप रेडी हो जाओ तो मुझे बताना। सैम बहादुर के सही समय पर लिए गए फैसले के कारण ही पाकिस्तान की फौज ने घुटने टेक दिए और दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश अस्तित्व में आया। 13 दिन की लड़ाई के बाद 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश बना और 93 हजार पाकिस्तानियों का सरेंडर हुआ।

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