इस घटना में एक 30 वर्षीय महिला मरीज गंभीर रूप से घायल हो गई। अधिकारियों के अनुसार, आग से उसके एक हाथ और गर्दन के पास का हिस्सा जल गया।
मरीज के परिजनों का आरोप है कि घटना के समय वार्ड में कोई भी मेडिकल स्टाफ या डॉक्टर मौजूद नहीं था। उन्हें खुद ही बचाव कार्य करना पड़ा और अस्पताल स्टाफ काफी देरी से पहुंचा।
अस्पताल अधीक्षक डॉ. नवीन किशोरिया ने स्वीकार किया कि उन्हें इस घटना की जानकारी सोमवार सुबह तक नहीं थी। उन्होंने कहा कि शुरुआती जांच से पता चलता है कि आग शायद मरीज के बीड़ी पीने से लगी हो सकती है।
यह घटना मथुरादास मथुर अस्पताल के लिए एक और झटका है। हाल ही में राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की यात्रा के दौरान अस्पताल में कई अनियमितताएं पाई गई थीं। आयोग ने अस्पताल के मानकों पर असंतोष व्यक्त किया और डॉ. किशोरिया को आवश्यक सुधार करने का निर्देश दिया था।
एकीकृत देखभाल इकाई एक महत्वपूर्ण इकाई है जहां गंभीर मरीजों का नर्सिंग स्टाफ और रेजिडेंट डॉक्टरों की देखरेख में इलाज किया जाता है। यह घटना उत्तर प्रदेश के झांसी में एक अस्पताल के NICU वार्ड में हुई बड़ी आग की घटना के ठीक बाद हुई है, जिसमें कई शिशुओं की मौत हो गई थी। खराब इलेक्ट्रिकल वायरिंग के कारण हुई इस घटना ने देश भर में स्वास्थ्य सुविधाओं में सख्त सुरक्षा उपायों की मांग को तेज कर दिया है।
राज्य मानवाधिकार आयोग से उम्मीद है कि वह जोधपुर की आग की घटना का संज्ञान लेगा। मरीज के परिजनों और अन्य कार्यकर्ताओं ने जवाबदेही की मांग की है और सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा प्रोटोकॉल में तत्काल सुधार की मांग की है। आग लगने के सही कारण की जांच जारी है।


