आत्महत्याओं के सवालों में घिरा IIT इंस्टीट्यूट, काउंसलर ने दिए विस्फोटक स्थिति के संकेत, छात्रों के मन में डर!
देश की सबसे मुश्किल परीक्षाओं में से एक जेईई मेन और एडवांस को पास करने के बाद आईआईटी कैंपस में स्टूडेंट्स को जगह मिलती है। यहां पहुंचने के बाद बच्चों को अपना सपना साकार होने जैसा लगता है। हालांकि आईआईटी कैंपस में लगातार हो रहे सुसाइड से कहानी कुछ और ही दिखाई पड़ रही है। कानपुर आईआईटी में 30 दिन के अंदर ही तीन स्टूडेंट्स के सुसाइड ने सबको हिलाकर रख दिया है। एक तरफ आईआईटी कानपुर इस पर खुलकर बात नहीं कर रहा, दूसरी तरफ स्टूडेंट्स और परिजनों के मन में आईआईटी का खौफ बढ़ता जा रहा है।
राज्यसभा के शीतकालीन सत्र में भी आईआईटी कैंपस समेत उच्च शिक्षण संस्थानों में स्टूडेंट्स के सुसाइड का मामला जोरशोर से उठाया गया। इन सबके बाद भी ऐसे मामले नहीं रुक रहे हैं। ऐसे में एनबीटी ने आईआईटी के कुछ पूर्व और वर्तमान स्टूडेंट्स से वहां के माहौल को समझने की कोशिश की। साथ ही कैंपस के अंदर मीडिया की पाबंदी की वजह भी जानने का प्रयास किया गया। इससे जुड़ी रिपोर्ट आपके सामने पेश है…
आईआईटी बीएचयू के पूर्व छात्र और स्टूडेंट पार्लियामेंट वाइस प्रेसिडेंट साई रेड्डी ने विस्तार से माहौल व अन्य मुद्दों पर बात की। उन्होंने ने बताया कि आईआईटी बीएचयू का लाइफ स्टाइल काफी अलग है। अगर अन्य आईआईटी से तुलना करेंगे, तो यहां पर सुसाइड के आंकड़े काफी कम मिलेंगे। यहां का प्लस प्वाइंट है कि हम लोग बाहर जा सकते थे, बाहर से लोग अंदर आ सकते थे। यहां पर डिपार्टमेंट में इतनी ज्यादा सख्ती नहीं है। वहीं दूसरे आईआईटी में डिपार्टमेंट के प्रोफेसर का प्रेशर काफी ज्यादा रहता है। वहीं पीएचडी स्टूडेंट्स पर उनके प्रोफेसर ज्यादा प्रेशर डालते हैं।
काउंसलिंग से कुछ खास मदद नहीं
साई रेड्डी ने आगे कहा, कई बार प्रोफेसर का प्रेशर वजह बनती है। वहीं दूसरी तनाव में बड़ी वजह जोन आउट (लोगों ने अलग होना) बनती है। इस दौरान वो अकेलेपन से सुसाइड के रास्ते पर चले जाते हैं। पीएचडी के मामले में बात की जाए तो कई बार गाइड से हेल्प नहीं मिल पाती है। वहीं बीटेक और एमटेक के मामले में एक ही पेपर में कई बार बैक आने से बच्चा तनाव में चला जाता है। इस दौरान अगर दूसरे बच्चे आगे निकल जाते है तो वो सुसाइड के ख्याल से घिर जाता है। स्टूडेंट काउंसलिंग की बता की जाए तो आईआईटी में बहुत खराब माहौल है। कुछ खास मदद नहीं मिलती है। बल्कि स्टूडेंट बॉडी (पार्लियामेंट) इसमें ज्यादातर सोशल सर्विस करती है।
खर्च से बच रहें संस्थान
साई रेड्डी ने बताया कि वो जब वाइड प्रेसिडेंट थे तो काउंसलिंग सर्विस बीएचयू आईआईटी में शुरू कराई थी। कई बार एडमिनिस्ट्रेशन स्टूडेंट्स को इसके बारे में आगे आकर ठीक तरीके से जानकारी नहीं देता है। बीचएयू में एक सुसाइड के बाद योर दोस्त नाम से पोर्टल बनाया गया था। तब स्टूडेंट अपनी पहचान बिना बताए समस्या लिख सकते थे। साइकेट्रिस्ट और साइकोलॉजिस्ट से मिलने के लिए फ्री में अपॉइंटमेंट बुक कर सकते थे। ये 2017 से दो साल तक चला। इसी कंपनी ने कानपुर और खड़गपुर आईआईटी में भी सुविधा शुरू की थी। जहां तक मुझे पता है कि ये शायद जारी नहीं रहा, क्योंकि इसके लिए 10 लाख रुपये हर साल भुगतान करना होता था। ये स्टूडेंट के लिए काफी अच्छी सुविधा हो सकती है।



