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सैयामी खेर बोलीं- ‘घूमर’ के लिए मेंटली अंधेरे में उतरना पड़ा, 10 घंटे तक हाथ बंधा रहता

एक्ट्रेस सैयामी खेर ने 2016 में फिल्म ‘मिर्जया’ से बॉलीवुड डेब्यू किया था। फिल्म भले ही नहीं चली, लेकिन सैयामी खेर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में जरूर कामयाब रही थीं। सैयामी खेर अब फिल्म ‘घूमर’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें वह एक दिव्यांग क्रिकेटर बनी हैं, जो एक हाथ से बॉलिंग करती है। साउथ की फिल्मों में भी काम कर चुकीं सैयामी खेर एक क्रिकेटर रही हैं और बैडमिंटन भी खेल चुकी हैं। उन्होंने नवभारत टाइम्स संग एक्सक्लूसिव बातचीत में ‘घूमर’ के साथ-साथ करियर को लेकर बात की। सैयामी खेर ने बताया कि ‘घूमर’ की तैयारी के लिए उन्हें किस तरह के चैलेंज से गुजरना पड़ा।

‘घूमर’ में आप एक हाथ वाली बॉलर के रोल में हैं। ऐसा रोल हर ऐक्टर का सपना होता है। आपके लिए ‘घूमर’ का सफर कैसा रहा? क्या चुनौतियां रहीं?
मेरे लिए यह वाकई ड्रीम रोल है। मुझे हमेशा से स्पोर्ट्स पर्सन का किरदार निभाना था, क्योंकि बचपन से मुझे स्पोर्ट में बहुत दिलचस्पी है। मैं क्रिकेट खेलती थी, बैडमिंटन खेलती थी। मेरे ट्विटर बायो में भी स्पोर्टमैन, क्रिकेट, सचिन पहले है। मैं क्रिकेट को लेकर जुनूनी हूं। फिर यहां तो कैमरा और क्रिकेट दोनों साथ में है। उस पर मेरे किरदार का ग्राफ बहुत चैलेंजिंग है, क्योंकि मैं एक डिफरेंटली एबल (दिव्यांग) कैरेक्टर निभा रही हूं तो चैलेंज तो बहुत था। पहले तो असल जिंदगी में राइट हैंडर हूं पर फिल्म में लेफ्ट हैंडर बनी हूं तो वो चैलेंज था। फिर, एक हाथ से बाल बांधना, जूते के फीते बांधना, नींबू या प्याज काटना, सब बहुत मुश्किल होता है तो फिल्म शुरू होने से पहले घर पर मैं वो सब प्रैक्टिस कर रही थी। फिर शूट के वक्त फिजिकल चैलेंज तो थे ही कि 10 घंटे तक हाथ बंधा रहता था। वो पूरा लॉक हो जाता था। एक कोहनी पूरी फट गई थी। नाखून निकल गया था, पर उस पर मैं ज्यादा फोकस नहीं करती हूं, क्योंकि ठीक है, वो सब तो करना ही था, मगर इस किरदार के लिए मुझे मेंटली बहुत अंधेरे तह में उतरना पड़ा, वो ज्यादा चैलेंजिंग रहा।

आप क्रिकेट को लेकर लेकर इतनी जुनूनी थीं, तो क्रिकेट पर ऐक्टिंग को कैसे चुन लिया?
मैंने प्रोफेशनली क्रिकेट सीखा नहीं है। मैं प्रोफेशनली बैडमिंटन खेलती थी। मैंने सचिन तेंदुलकर को देखकर क्रिकेट सीखा। मजेदार बात ये है कि मेरे हाउसहेल्प का नाम इकबाल (क्रिकेट पर आधारित फिल्म) था, तो उन्होंने मुझे क्रिकेट सिखाया। मैंने स्कूल बंक करने के लिए क्रिकेट टीम बनवाई और हम स्टेट लेवल पर फाइनल तक गए थे। मुझे नेशनल टीम में सिलेक्शन के लिए बुलाया भी गया था, पर तब बैडमिंटन टूर्नामेंट चल रहा था तो मैं नहीं गई। फिर, ‘मिर्जिया’ के सेट पर एक बार क्रिकेट टीम के सिलेक्टर किरण मोरे सर आए थे। तब हम लोग ब्रेक में क्रिकेट खेल रहे थे तो उन्होंने भी बोला कि तुम एकाध कैंप करो तो तुम इंडियन टीम में होगी, पर मैंने कहा कि सर अब तो फिल्म आ रही है। तब तक मैं एक्टिंग शुरू कर चुकी थी और एक बार जब एक्टिंग का कीड़ा चढ़ जाता है, तो उससे छोड़ना मुश्किल हो जाता है।

क्रिकेट के अलावा भी किसी तरह का जुड़ाव महसूस किया आपने इस कैरेक्टर से?
बिल्कुल। जिस तरह अनीना एक बहुत बुरे दौर से गुजरती है, जहां उसे कोई रोशनी नजर नहीं आती, वहां से उठकर वह सफलता की कहानी लिखती है। मेरे हिसाब से हम सब जिंदगी में कई बार निराश, हताश होते हैं। अपनी जिंदगी में उतार चढ़ाव से गुजरते हैं, तो जब बुरा वक्त होता है, उससे कैसे निकलना है, मेरे लिए ‘घूमर’ उस हिम्मत की कहानी है।

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