भारत में शीशे के जार में बंद ‘चांद के टुकड़े’ की कहानी जानते हैं?
हमारा चंद्रयान-3 आज चंदा मामा के घर में गृह प्रवेश करने वाला है। शाम 6 बजे के कुछ देर बाद चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा। पूरे देश की निगाहें आज चंद्रयान पर टिकी हैं। हम सब जानते हैं कि चांद पर पहला कदम नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने रखा था। लेकिन ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि वो चांद से करीब 22 किलो पत्थर और मिट्टी लेकर पृथ्वी पर आए थे। अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने चांद के बारे में रिसर्च करने के वास्ते ये मिट्टी और पत्थर के सैंपल दुनिया के अलग-अलग देशों के वैज्ञानिकों को बांट दिए। इनमें से एक छोटा सा टुकड़ा भारत को भी मिला, जिसे बड़े सहेज कर मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में रखा गया है। आज हम इसी जार में बंद चांद के टुकड़े की कहानी बताने जा रहे हैं।
चांद से 23 किलो पत्थर और मिट्टी लाए थे आर्मस्ट्रांग

साल 1969 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी ने मून मिशन अपोलो-11 को चांद के अध्ययन के लिए भेजा। इस स्पेस में नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन चांद पर गए थे। उन्होंने चांद पर रिसर्च की और वहां से पत्थर और मिट्टी के सैंपल को इकट्ठा किया और अपने साथ पृथ्वी पर ले आए। वो 24 जुलाई, 1969 को चांद से 21.7 किलो सैंपल लेकर नासा लौटे। NASA ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों की मदद से इस सैंपल पर रिसर्च करना शुरू की। NASA ने रिसर्च के लिए दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों में चांद से लाए गए सैंपल को बांट दिया और इस तरह से भारत के हाथ भी चांद का छोटा सा टुकड़ा लग गया।
भारत के पास भी है 100 ग्राम चांद का टुकड़ा




