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जब विकास पर्यावरण को रौंद दे, तब सवाल उठना जरूरी.

फेयर माइंस केस ने दिखाया कि नियम कागजों में ही सीमित हैं.

पलामू : फेयर माइंस कार्बन प्राइवेट लिमिटेड पर लगे आरोप केवल एक शिकायत नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की तस्वीर हैं जो उद्योगों को खुली छूट देती है। ग्रामीणों द्वारा वीडियो और फोटो साक्ष्य सहित की गई शिकायत यह साबित करती है कि पर्यावरण मंजूरी की शर्तें सिर्फ दस्तावेजों तक सीमित हैं। अगर खनन वही करेगा जो चाहेगा, तो पर्यावरण संरक्षण किसके लिए है?
ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी नदी में खनन कर सुरक्षा सीमा को तोड़ चुकी है। खनन के दौरान निकलने वाला कचरा और गंदा पानी सीधे नदी में छोड़ा जा रहा है। यह केवल नदी को नहीं बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है। बिना अनुमति पेड़ों की कटाई और प्रदूषण नियंत्रण के अभाव ने स्थिति और खराब कर दी है। ऐसे मामलों में प्रशासन और सरकार की भूमिका सवालों के घेरे में आती है।
हालांकि अंचल अधिकारी द्वारा नोटिस जारी किया गया, लेकिन कार्रवाई जमीन पर नहीं दिखी। कानून तभी प्रभावी होता है जब उसका पालन हो, न कि केवल जब कागज पर लिखा जाए। अगर स्थितियां नहीं बदलीं, तो ग्रामीणों की परेशानी और प्रकृति दोनों संकट में पड़ जाएंगे। यह समय है कि व्यवस्था जागे और जिम्मेदारी तय की जाए।

 

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