Jharkhand

 झारखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा सरहुल

झारखंड में प्रकृति का त्यौहार यानी कि सरहुल की शुरुआत गुरुवार से हो गई. सरहुल आदिवासियों का प्रमुख त्योहार माना जाता है. इस दिन आदिवासी समुदाय के लोग तालाब से मछली और केकड़ा पकड़ने का काम करते हैं. सरहुल के पहले दिन मछली के जल से अभिषेक किया जाता है और उस जल को  अभिषेक किए गए जल को घर में छिड़का जाता है. दूसरे दिन उपवास रखा जाता है. तीसरे दिन पाहन (पुजारी) उपवास रखते हैं. 

सरना पूजा स्थल पर सखुआ के फूलों की पूजा की जाती है. रांची के चंदवे गांव के मुख्या गुरुचरण मुंडा ने बताया कि हम आदिवासी समाज के लोग धरती माता की पूजा किया करते हैं. भगवान और धरती माता से प्राथना करते हैं कि धरती पर मौजूद समस्त प्राणी और पेड़ पौधे स्वस्थ रहें. सभी जीव जंतुओं को दाना पानी मिलता रहे. बारिश ठीक से हो, ताकि हम खेती बाड़ी कर सकें.

वही गांव के पुजारी बताते हैं कि इस सदियों से चली आ रही परंपरा को आदिवाशी समाज धार्मिक नियम धर्म से निभाते आ रहे हैं. आदिवासी जंगलों से जुड़े होते हैं. और प्राकृति से काफी नजदीक होते हैं. सरहुल के दिन से आदिवासी समाज कृषि का कार्य शुरू करते हैं. इस दिन से ही गेहू की नई फसलों की कटाई का काम शुरू किया जाता है. इस दिन गांव के पुजारी जिसे पाहन कहा जाता है, वो भविष्यवाणी करते हैं कि इस साल अकाल पड़ेगा या अच्छी बारिश होगी.

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